पूर्णिमा का चांद भी कहने को पूरा होता है
वो 15 रातों के इंतजार के बाद भी अधूरा होता है।
इंतजार पूर्णिमा पर निखर कर निकलने का
सनम का दीदार सफेद रौशनी में करने का होता है।
उस इंतजार में खुद थोड़ा थोड़ा खोना – पाना
महीने भर का वक्त बेवजह गुजार देना होता है।
पूर्णिमा का चांद पूरा हो भी कहा पूरा होता है
तुमसे मिलने की चाहत में हर रोज़ अधूरा होता है।
वो सिलवटे बादलों की जिसमें छुपता संवरता है
तारों का बिछौना तुम्हारी याद में संजोया होता है।
भीनी सी रौशनी में रोज़ जब तुम्हें देखता है
हज़ारों डिबिया प्यार का दिल में दबाया होता है।
पूर्णिमा का चांद भी उतना ही अधूरा होता है
जैसे तुम्हारी सौंधी सी खुशबू को प्रियतम तरसा होता है।।