मैं अक्सर आईने मे खुदको तलाश करता हु
इस शरीर के भीतर छिपा
मैं की खोज का भ्रम
मुझे कही नही पहुंचा पता
इस जद्दोजेहद में कही ठहर जाने की लालसा
मुझे तुम तक ले आती है
सौ मैं तुम्हे याद करता हु
तुम केवल खाबों में आती हो
मेरे हाथ में पड़ी तुम्हारे नाम की रेखा
दिनबदीन बढ़ती जाती है
वह नदी बन जाना चाहती है
मैं उस सुखी हुई नदी में पानी तलाशता हु
गला सूखने पर खाब टूट जाता है
और में शून्य में तकता देखता रहता हु
कुछ भी नही
NILESH SINGH RAO
Comments
Kya baat h. 💖💖💖💖
Beautiful words ❤️
The finest words to sum up a pure feeling buried deep within.
Kya baat💯💯💯
Amazing