नदियों से बनती भाफ की तरह|
उड़ के आसमान को छूना तो चाहो|
आसमान में उड़ते पंछी की तरह|
बादलों के ऊपर जाना तो चाहो||
गहरे समुद्र के नीचे जलजीव की|
तरह जलतरंग होना तो चाहो ||
बस एक बार जिंदगी को खुलकर और आत्मनिर्भर बनकर जीना तो चाहो||
बन जाएगी यह वतन आत्मनिर्भर|
बस एक कदम आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ाना तो चाहो||