वक़्त सिरफिरा है जाने जाना किस ज़ानिब है
वहती सी हवाएं है जाने रुकना किस ज़ानिब है
मुसलसल घूरता रहता हूं उस वक़्त को
कोसिस करता रहता हूँ जीने की
चंद लम्हातों में
लगता है तुम आओगे
जिंदा कर दोगे उन लम्हों को लम्स से अपने
उम्मीदों की कुछ लकीरें अब भी हैं
जाने खिचीं किस ज़ानिब हैं