ये ख़ाब अधूरा है
आँखे बंद है
फिर क्यों होता न पूरा है?
नींद की गहराई है गुम कहीं
नैनो से वो खो सी गई
सपना भी देखा उजाले में
रात बीत गई उभरते सवालों में ।
ये ख़ाब अधूरा है
कितनी कड़ियाँ जोड़ ली
फिर क्यों होता न पूरा है?
थमा है कहीं,
राह से भटका है कहीं
जवाबों में उलझा है कहीं
चमकते सितारों में, जमीन से बिछड़ा है कहीं ।
ये ख़ाब दूसरा है
सवाल भी बदल गया
फिर क्यों होता न पूरा है?
Comments
kindred sprits ❤
Nice poem 👍
bht khub
Sheeeeeesh 👌🌜
Bohot badhiyan, Bhaiya!👏