तुम्हारी नन्ही अंगुलियों की छाप थी।
जिस दिल में डगमगाते कदमों की छाप थी।
उस दिल को जख्मी किया बताओ
बताओ उस खंजर की क्या माप थी।
तुम्हारी तुतली बोली की किलकारी थी।
मासूम मुस्कान जिस पर वो बलिहारी थी।
सच सच कह दो उस ममता को काटने वाली कौन सी कटारी थी।।
तुम्हारे खिलौनों की दुनिया की वापसी थी।
जिसके तुम थे सम्राट वो सदा ही दासी थी।
वो तलवार कहां मिली जो ममत्व डसने की प्यासी थी।।
तुम्हें खिला कर ही खुद खा पाती थी।
सुखे में सुला तुम्हें खुद गीले में सो जाती थी।
कहां पाई तुमने वो क्रूर कृपाण जो मातृ गाती थी।।
Comments
Good
Good
Emotional poem 😢😢
Great job. Di.
Shi h shi h
Very nice
Adbhudh
Nicely explaind this topic
Really,
You are well doing
Keep it up
Ati sundar
Ma ki dasha ka svenndanshil varanan