Poem जागते ख़्वाब By Amrish Saini on Friday, August 27, 2021 …मुकम्मल होते ख्व़ाब कभी, होती अगर नींदें मुकम्मल…रोज़ फिर बुनते ताना बाना कुछ नये ख्वाबों का ..,और जिन्दगी बादलों से परे एक सफेद रोशनी मे नहाई होती,,,,यूँ होती मुकम्मल जिन्दगी फिर हमारी । ✍ & 📷 अमरीश सैनी Previous Post Next Post Related Posts Poem कौन देखता है…..? Poem Get Lost In Life Poem Delusive Pain.. Illusive Hope