प्रारम्भ-
कहाँ तक जाना है?
मार्ग कैसे बनाना है?
साधन-संसाधनको साध्यतक
साधकको कैसे लेजाना है?
प्रश्नावलीका ढेर है
उत्तर पानेकी तलाशमें
बस कदम चलनेकी देर है!
मध्य-
कभी चंद्रमा की शीतल छांव है
व कभी सूरजकी तीक्ष्ण प्रकाश
कभी वायुमें तूफान है
व कभी वर्षाकी बोछाड़
कभी धरतीमें भूचाल है
व कभी सागरमें उफान
प्रकृतिका नियम कहूँ
या समयका इम्तेहान!
साधनामें अखंड चट्टान हुँ
समर्पनमें मोर पंख
स्वभावमें पवित्र अग्नि हुँ
सागर मैं प्रशांत हुँ,
अनगिनत ज्वारों के संग!
हृदयकी स्प्रन्धों सा विराम लेके
मुरालीकी तानमें झूम आया
माखन मथने के उस ज्ञानमें
प्रभुपाद मैं चुम आया!
अन्त्य-
कुछ कहानियां अपूर्ण रहगयीं
कुछ संघर्ष हार गया
कुछ यात्रायें अधूरी रही
कुछ इच्छाएं त्याग दिया
पर, चेतना का उस भय से
वो संग्राम बड़ा महान था!
अखंड चट्टानका सागरकी छालसे
वो समर बड़ा महान था!
मोर पंखकी उस चक्रवात में
वो सफर बड़ा महान था!