केहते हो की प्यार करते हो
तो जताते क्यू नहीं?
उन लबों में जो बातें चुपयी हैं
उन्हें बताते क्यू नहीं?
मुझें तो बोहोत सारी बातें बतानी हैं
पर क्या तुम्हें भी कुछ केहना हैं मुझसे?
जो रूठ जाऊ मैं
तो मनाते क्यू नहीं?
जो दूर चली जाऊ
तो बुलाते क्यू नहीं?
मैं तो तुम्हें बोहोत याद करती हूं
क्या तुम भी मुझे याद करते हो?
हक हैं तुम्हारा मुझपें
तो वो हक जताते क्यू नहीं?
तुझं से झगडा भी करना हैं
पर तुम रूठा करते क्यू नहीं?
हां बडी हसीन हैं हम दोनों के दर्मियां सब कुछ
पर क्या थोडी नोक झोक जरूरी नहीं?
बडे शांत किस्म की हस्ती हैं तुम्हारी
थोडी सी हलबली तो मचाया करों
थोडा हम रूठेंगे तुमसे और तुम मनाना
थोडा हम मनायेंगे और तुम रूठ जाना
मैं तुम्हारी ही हुं ना और तुम मेरे
तो थोडा हक क्यू न जताया करें?
कभी कभी तो लगता हैं
मेरे होने से क्या तुम्हें फरक भी पडता हैं?
हां, हैं एक अपना अपना दायरा
पर फिर भी कभी कबार तू क्यू नहीं लडता हैं?
इसीं से तो एहसास होगा की हों तुम
और जानते हो की मैं भी हूं
मैं तुम्हें खोने से डरती हूं
क्या तुम भी मुझें खोनें से डरतें हो?