जब रात होती है सबसे स्याह
होती नहीं आशा की किरण
बन कर जुगनू आती हो तुम
जब जीवन लगने लगे वीरान
अर्थहीन, नीरस और रंगहीन
बन कर ख़ुशबू आती हो तुम
दिन भर की आपाधापी में
मिलते हैं कितने ही आघात
बन कर चन्दन आती हो तुम
अब नहीं रहा कोई पूर्वाग्रह
हो चुका हूँ सपनों से आज़ाद
बन कर बंधन आती हो तुम