बदल गया है ज़माने का चलन
घर पर हूँ पर लाचार नहीं हूँ
अपनी ज़िन्दगी से बेज़ार नहीं हूँ
मिल नहीं पाता हूँ अब उनसे
मुनासिब है भूल जाऊँ उन्हें
कह दो उनसे मैं तैयार नहीं हूँ
मिला है वक़्त सोचने का मुझे
जो भी किया अच्छा बुरा
अपने किये पे शर्मसार नहीं हूँ
करता हूँ कुछ ज्यादा काम
खटता हूँ रोज़ सुबह से शाम
शुक्र है कि बेरोज़गार नहीं हूँ
रखता हूँ अपना ख़याल ज्यादा
एक ज़िन्दगी तो हज़ार नेमत
मनाता हूँ खैर, बीमार नहीं हूँ