हाँ मैं मर्द हूँ!
फिर भी ना तो किसी निर्भया को पहुंचाने वाला दर्द हूँ, ना उस लक्ष्मी को तेजाब से झुलसाने वाला चर्म हूँ, ना किसी नारी को दहेज के लिए मारने वाला चिमटा गर्म हूँ,
ना ही किसी स्त्री का पीछा करने वाला अधर्मी हूँ ,
हाँ फिर भी मैं मर्द हूँ ।
पलकें मेरी भी भीगती हैं ,मेरा भी दिल टूटता है,
अपने जख़्मों पर खुद ही लगाता मरहम हूँ मैं;
फिर भी मर्द हूँ मैं।
माँ का दुलारा, बहन का भाई प्यारा, छोटे भाई का यारा,पत्नी का महबूब और सहारा, बेटी का बाप न्यारा हूँ मैं,
हाँ मर्द हूँ मैं ।
खिलाफ हूँ मैं स्त्री पर किए हर अत्याचार के,
क्योंकि मैं भी शक्ति, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती अन्नपूर्णा के बिना अधूरा हूँ,
आखिर नारी का सार हूँ मैं।
बेगुनाही हर स्त्री का कई बार बन जाता गुनहगार हूँ मैं,
दुराचार मुझसे भी होता है ;झूठे इल्जामों में मैं भी फसा दिया जाता कई बार हूँ,
हाँ मर्द हूँ मैं।
मेरे भी अनकहे दर्द हैं; मेरे भी अनचाहे गम हैं; कहता नहीं हूँ उनको पर हर पल सहता हूँ; हाँ मर्द हूँ मैं।
कई बार दबा दी जाती है मेरी आवाज उन पाखंडी औरतों के शोर में ;
बेकस मैं भी कर दिया गया हूँ उस नारीवाद के जोर में ,फिर भी मर्द हूँ मैं ।
मर्द होना आसान नहीं, प्यार चाहिए मुझे भी हमदर्दी का एहसान नहीं।
जानता हूँ मानता हूँ कन्यादान से बड़ा कोई दान नहीं;
सजदे करता हर स्त्री का हूँ; उससे बड़ा मेरा कोई ईमान नहीं ; मर्द होना आसान नहीं।।