आँचल के साये में ठण्ड से रोकती है,
कभी फुसलाती, कभी टोकती है,
माँ आखिर माँ होती है।
बचपन की हर एक यादें संजोती है,
फिर सपनो की सीढ़ियां पिरोती है,
चुनौती से जूझकर कामयाबी में भी रोती है,
माँ आखिर माँ होती है।
सबकी शिकायतें सुनती, खुद एक भी न करती,
हमारे बिखरे को समेटती,
और छोटी छोटी खुशियों की बाटती,
माँ आखिर माँ होती है।
वो क्या शक्ति है जो माँ मुझे भगवान्-सी लगती है,
मेरे बिगड़े काम बनाती है माँ,
मेरे नखरो को सर पे उठाती है माँ।
माँ की गोद में सर रख के मैं खुद को पाती हूँ,
दुनिया की शोर से दूर मैं सो पाती हूँ।
इतना हौसला कहाँ से लाती हो माँ?
मेरे लिए इतना जतन उठाती हो माँ,
मुस्करा कर आसानी से आंसू छुपाती,
माँ आखिर माँ होती है।