मेघों से बरसती बूंदें और झींगुर की तान
बेचैन हवाएं संग सब छेड़ते हैं हमें,
मन के सूने पड़े किसी कोने में किसी
अपने के लिए मन मेरा भी तड़पता है।
मन करे की करू श्रृंगार दुल्हन सा
बारिश में भींगो के तन को जोगन बन,
पिया की राह तकु खड़ी इंतजार में
बिरहन मैं अभागन उर्मिला बन जाऊ।
सखियों के ताने घर भी विरान हो गया
मेरी आंखें भी सुख गई रो रो कर,
सर्द हवाएं तन को जलाती है तेरे बिन
जो मन मचलता था आज नीरस है खड़ा।
साथ पिया होते करते श्रृंगार सोलह
रिझाते, खूब तरसाते फिर लिपट जाते,
पर मुझ अभागन को ये सजा मिली
बारिश से भींगा तन भी जलता है।
शूल से चुभते हैं सारे पुष्प जिससे
सखियां इस गोरे तन पर मारती है,
सब लौट आए युद्ध के बाद पर
तुम क्यों नहीं आए सबके संग।
सबने मनाई ईद, होली, दिवाली
हमारा आंगन ही क्यों सूना था,
धरती की गोद में तुम अकेले
बिना पूछे क्यों सो गए।
तुम्हारे बिना अधूरे हम और
ये दुनिया भी पूरी नहीं लगती,
तुम आए तो थे साथ सबके पर
तिरंगे में लिपटे आंखों में सम्मान लिए।
जो थी सुहागन नई दुल्हन सी
जहां सजता था सिंदूर कभी,
आज से गर्व सजाऊंगी तुम्हारी
आखिरी सांस की लड़ाई का जीत मनाऊंगी।
लड़ाई मे कोई जीते कोई हारे
बाद उसके लाशे बिखर जाती है,
सुहगान कई विधवा तो कही
मां की गोद सूनी हो जाती हैं।
तुम्हारे नाम की मेंहदी ना सही
तन पर तुम्हारी वर्दी सजाऊंगी,
जिस मिट्टी को तुमने गले लगाया
उसका तिलक मैं भी लगाऊंगी।
तुम्हारी अधूरी तमन्ना अब मैं पूरी करूंगी
जगह तुम्हारी लेकर मैं खुद युद्ध पे जाऊंगी,
सो कर धरती की गोद में मैं भी एक दिन
तुमसे जरूर मिलने आऊंगी।