गिरता, संभलता मै चलता रहा।
गुजरती सांझ में ये गलियां टहलता रहा।
ना जाने की ज़िद ना जीने की ज़िद, मन बस यूं ही मचलता रहा।
कब गया पता ही ना चला, वक्त ही तो था फिसलता रहा।
गिरता संभलता मै चलता रहा।।
दुवार खड़ा ताकता रहा मै, दिखा कुछ नहीं, मन में बस खयाल उमड़ता रहा।
गिरता, संभलता मै चलता रहा।।
रात हुई, रुका मै, दिया बरता बुझता जलता रहा, उस अंधेर में दिखा थोड़ा सा, और मै अपने ही अक्स से डरता रहा।
गिरता रहा, संभलता रहा, यूं ही बस चलता रहा।।
चाहता तो रुक भी जाता, पर बढ़ता रहा।
मंजिल पे तू है, ये सोच के, बस चलता रहा, बस चलता रहा, बस चलता रहा।।