छाया तमस जो मेरे मन पर,
गम की छटा बिखरी जीवन पर,
हौसला टूटता दिखे जो,
ढेर सारे फिर जतन कर,
तैर कर मुश्किलों का दरिया
हिम्मत के तट तक पहुँचना है।
मिसाल बन जाए जहां पर
उस शिखर तक पहुंचना है।
संघर्ष के हर भंवर को तर कर,
जल वेग से शिला सा निखरकर,
श्रम की भट्टी में सोने सा तपकर,
अंजान राह पर एकल ही चल कर,
नभ से धरा के फासले में
अंतिम कदम तक पहुँचना है।
इतिहास भी जिसके आगे झुके
उस शिखर तक पहुंचना है।
रक्त के कतरे में भिगोकर,
स्वेद के कुँए में भी धोकर,
बहानों के सब अर्थ खोकर,
अपने लक्ष्य से एकाकार होकर,
परिश्रम का हर वो धागा,
सुखाकर फिर पिरोना है।
जलधर सा गरजे श्रम जहां पर
उस शिखर तक पहुंचना है।
सूर्य की लालिमा सा चढ़ कर,
मुकुट सा मस्तक पर सँवरकर कर,
मिट सके न जो पहचान मेरी ,
गाथा वो अपने नाम लिख कर,
गर्व से गायन करे सब
हर वो लब तक पहुँचना है।
मां बाप का गौरव बनूँ जहाँ
उस शिखर तक पहुंचना है।