चल समर का जयघोष कर
ना दुखी हो ना शोक कर
ना सोच कुछ भृकुटी चढ़ा
अपनी भुजा तू प्रचंड कर
चल समर का जयघोष कर
इस समर का तू भीम है
उरु तोड़ता कर छिन्न है
गर्जन से तेरे काँपता
इस विश्व का हर दनुज है
जो धर्म को क्षति दे रहे
बन काल उनका वध तू कर
चल समर का जयघोष कर
इस गदा को संधान दे
फिर पी लहू और प्रमाण दे
ना रोक पाएगा कोई
चल युद्ध को अंजाम दे
धरती पे ना फिर जन्म ले
कोई भी तमचर फिर प्रखर
चल समर का जयघोष कर