लगा के आग आसमान में जाने को छोड़ आया है,
के दिन सुलगता रहा..यूँ ही तपता रहा,
रात ठंडी पड़ी राख सी खामोश खड़ी है,
कुछ चमकते कोयलों में शायद अब भी आग बाकी बची है,
किसी ने तो सेकी होंगी रोटी इसमें जाने राख खरोंच खरोंच के,
के कैसे कुछ जलते कोयले तितर-बितर पड़े हैं,
और गोल सा सुनहरा तवा हलकी सी आँच ले कर अब भी वही पड़ा है…