एक स्त्री नदी के समान होती है
जो बस बहना जानती है
लोगों को तृप्त करना जानती है,
और एक मर्द उस नदी के नीचे बिछे भारी पत्थरों सा,
जो उसे उठाये सहारा दिए आगे बढ़ता जाता है,
पर वो स्त्री कभी उसपर भार नहीं बनती
बल्कि उसे अपनी निर्मलता से सहलाती चली जाती है..