झरने की ध्वनि से विस्मृत हूँ मैं,
नदी के स्वर की वशीभूत हूँ मैं ,
आज प्रकृति के समीप हूँ मैं,
कंकर की ठोकर खाई तब नदी की मधुर कलकल दी सुनाई,
पहाड़ की चोटी से गिरकर चोट खाई तब झरने की धुन कानो को सुहाई,
सोने ने आग में तप कर कितनी मार खाई तब कुंदन की चमक दी दिखाई।
चाहे जिंदगी ने कितना ही जोर से गिराया हो ,
अपनों ने भी जख्मों पर नमक लगाया हो,
झूठे दिलासे ने जख्मों को और गहराया हो,
जीत उसकी है जिसने हार कर भी हौसले को नहीं हराया हो।
आजाए मुश्किलें तो बनाए रखो अपना धैर्य,
चोट लगे तो दिखाओ अपना शौर्य,
हर हाल में जारी रखो अपना कार्य;
तभी चमकोगे बनके सूर्य।
पहचानो अपने नूर को,
जलाओ थोड़ा अपने गुरूर को,
जरा सी ढील दो अपने फितूर को,
छोटा ही सही पाओगे जरूर तुम कोहिनूर को।