भूल जाते हम बनकर कुछ
By Meghna Dash रात भर जग-जग के पढ़ना कल क्या पढ़ाना है ये सोचना। ज़हन में रहे सदा, हम इनके नाम करे ज़िंदगी अपनी, हमारे। बिना शिकवा करे,...
By Meghna Dash रात भर जग-जग के पढ़ना कल क्या पढ़ाना है ये सोचना। ज़हन में रहे सदा, हम इनके नाम करे ज़िंदगी अपनी, हमारे। बिना शिकवा करे,...
By Mrityunjay Mishra कुछ पत्तों के गिर जाने से वृक्ष नहीं रोया करते हैं... संघर्षों के पथ पर चलकर आस नहीं खाया करते हैं... शूल पड़े हों...
By Atulyaa Vidushi पंछी था मन उसका दिल था कुछ मुसाफिर सा, कहता था समझता नहीं कुछ पर था हर बात से वाकिफ़ सा। मुस्कान लाता वो सबके चेहरे...
By Atulyaa Vidushi हिम्मत रखो हार के बाद जीत और जीत के बाद हिम्मत, इसके बीच हारने की हिम्मत रखो। ये दुनिया तो पराई है ना, तो इसमे खुद...
By Mrityunjay Mishra तुम्हारी बाहों के दरमियान भी, कभी तो अपनी भी रात होगी... अजीब लगती है ये बात तुमको, मगर कभी सच ये बात होगी......
By Mrityunjay Mishra पहले ये चांद ऐसा नहीं था, दाग इसमें तब भी थे पर ये खूबसूरत लगता था... हाँ, उसके नूर के आगे चांदनी फीकी लगती थी...
By Adarsh Singh आसमान के लाखों तारे, क्या रोज़ यूँ ही टीम-टीमाते है? या रोशनी और धूल के, बादलों मे फस कर रह जाते है? क्या शोक हो अब चाँद...
By Harsh Chaudhary वह मेरे तन-मन में समाई है, उसकी यादों की खुशबू में, मेरी हर सुबह मैंने सजाई है। हर एक लम्हा उसके बिना, लगता है जैसे...
By Harsh Chaudhary पात्र: 1. आर्यन – कहानी का मुख्य पात्र, संघर्षशील व्यक्ति 2. प्रिया – आर्यन की पत्नी, जो बार-बार घर छोड़कर चली जाती है...
By Harsh Chaudhary प्रेम एक मौन संवाद है, इसका ना कर पाया कोई आज तक अनुवाद है। दिल से दिल की बात कही जाती है, बिन शब्दों के भी सब बातें...
By Ojeshwini Rajput आओ तुम्हें बसंतर के रणांगण का दृश्य दिखलाती हूँ, भारत के उन वीरों का जंगी मिज़ाज बतलाती हूँ। इकहत्तर जिसके...
By Khushi Tanganiya ये आवाजें मुझे खा रही हैं, मैं खोखला हो चुका हूँ अंदर से अब। संवेदनाएँ कुछ कम और बेचैनियाँ इतनी बढ़ गई कब?...
By Neha नानी मेरी बूढ़ी थी, कुछ याद नहीं उनके बारे में, बस यह कि, वो बूढ़ी थी। हाँ, हँसती थी तो, बूढ़ों जैसे हँसती थी, वो ढला पेट, दुखी...
By Abhimanyu Bakshi आसमान को दिखाया है मैंने उसका रक़ीब कोई, बदलता है मौसम जैसे यहाँ पर हबीब कोई। उसे नई ख़ुश्बूओं से मिले फ़ुरसत, मैं...
By Abhimanyu Bakshi मौसम मोहब्बत का यूँ तो अज़ल से है, उल्फ़त की बरसात कब होगी। शुक्रिया जो बुलाया हमें दावत पे, पर दिल की मुलाक़ात कब...
By Abhimanyu Bakshi (भूलियेगा नहीं, जब अगस्त 2024 में इंसानियत की हत्या हुई थी…) अब मंदिरों से बुत हटवा दीजिए, उनकी जगह धन-दौलत रखवा...
By Abhimanyu Bakshi कई पहेलियाँ सुलझाना चाहता हूँ, मैं अपनी तस्वीर बनाना चाहता हूँ। वक़्त ज़ाया करना अब गवारा नहीं , मैं तनहाइयाँ मिटाना...