top of page

ख़ुदकुशी के बाद वाली सुबह

Updated: Jan 18




By Chinmay Kakade


चिता तकरिबन बुझ चुकी थी, कुछ अंगारे बचे थे

हड्डियाँ घुल गई उस काले कोयले में, मानो जैसे उनकी तकदीर में लिखा है


घर तो सब आ गए थे, लेकिन अकेले में बैठने

गम में तो माँ बाबा थे, बाकी सब तो बस रो रहे थे


ना बादलों ने घेरा, ना बारिश हुई, आसुओं का बगीचा तो फिर भी खिला था

एक ठहरव सा था हवा में, जैसे रुकी हो मेरे रूह को ले जाने


जाने से पहले बैठा आखिरी बार दोनों के कदमों में, सर था मां के पैरों में और

पैर थे बाबा की बाहों में

माँ ने फेरा हाथ सिर पर से, बाबा ने फिर पैर दबाये, ठंडे पड़े थे हाथ दोनों के, पर

ऐसी नरमाहट तो चिता की आग भी न दे पाई


लोग जाने लगे एक-एक कर, मैं बैठा रहा वही, हवा भी अब तेज होने लगी थी

उसकी आहट हुई

जाने से पहले एक ही ख्याल घूमता रहा मेरे मन में, क्या होता अगर सोया होता

एक दिन पहले दोनों की बाहों में


By Chinmay Kakade




 
 
 

10 Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
Rated 5 out of 5 stars.

Masttt🙂‍↕️

Like

Rated 5 out of 5 stars.

,,🙏

Like

Rated 5 out of 5 stars.

Awesome nice

Like

Rated 5 out of 5 stars.

भावस्पर्शी! 👌👌

Like

Rated 5 out of 5 stars.

खूपच छान शब्दांकन

Like
SIGN UP AND STAY UPDATED!

Thanks for submitting!

  • Grey Twitter Icon
  • Grey LinkedIn Icon
  • Grey Facebook Icon

© 2024 by Hashtag Kalakar

bottom of page