By Chinmay Kakade
चिता तकरिबन बुझ चुकी थी, कुछ अंगारे बचे थे
हड्डियाँ घुल गई उस काले कोयले में, मानो जैसे उनकी तकदीर में लिखा है
घर तो सब आ गए थे, लेकिन अकेले में बैठने
गम में तो माँ बाबा थे, बाकी सब तो बस रो रहे थे
ना बादलों ने घेरा, ना बारिश हुई, आसुओं का बगीचा तो फिर भी खिला था
एक ठहरव सा था हवा में, जैसे रुकी हो मेरे रूह को ले जाने
जाने से पहले बैठा आखिरी बार दोनों के कदमों में, सर था मां के पैरों में और
पैर थे बाबा की बाहों में
माँ ने फेरा हाथ सिर पर से, बाबा ने फिर पैर दबाये, ठंडे पड़े थे हाथ दोनों के, पर
ऐसी नरमाहट तो चिता की आग भी न दे पाई
लोग जाने लगे एक-एक कर, मैं बैठा रहा वही, हवा भी अब तेज होने लगी थी
उसकी आहट हुई
जाने से पहले एक ही ख्याल घूमता रहा मेरे मन में, क्या होता अगर सोया होता
एक दिन पहले दोनों की बाहों में
By Chinmay Kakade
Masttt🙂↕️
,,🙏
Awesome nice
भावस्पर्शी! 👌👌
खूपच छान शब्दांकन