1990 का समांSep 15, 20221 min readUpdated: Oct 17, 2022Rated NaN out of 5 stars.By Deepak Jainसोचते-सोचते हम बीते कल वाले समां में पहुंचे,यादों का बक्सा ले गली कूचे वाले पुराने मकाँ में पहुंचे,1990 के दूसरे वर्ष के तीसरे माह में पहुंचे,अतीत की गलियों के जाने-पहचाने उस परगना में पहुंचे,जैसे सुखद स्मृतियों के सातवे आसमाँ में पहुंचे.. वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...सुपर-हिट फिल्म वाले इतवार का, कॉलेज के अंदर पंहुचे फ़िल्मी बुख़ार का,बहन-भाई के झगड़ो का, हीरो-विलियन के लफ़ड़ों का,सचिन की ज़ोरदार बल्लेबाज़ी का,टीवी कलाकारों की ज़बरदस्त ड्रामेबाज़ी का,वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...ताल पे सरकती म्यूजिक कैसेट के रील का,लता के गीतों पे थिरकती बेबाक़ भीड़ का,'रुकावट के लिए खेद है' वाली लाइन का, डेनिम कपड़ो वाली डिज़ाइन का, हीरो के लंबे बाल का,विलियन की शातिर चाल का,वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...बिना गूगल मैप के पता ढूंढ़ने का,छोटी-बड़ी खिटपिट में मज़ा ढूंढ़ने का,मंडियों में, बाज़ार की हर दूकान का, ऑनलाइन मार्केटिंग से दूर हर सामान का, इंटरनेट से दूर, मोबाइल के अभाव का,मेलजोल की गलियों का, सादगी के गांव का,वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...मुस्कुराते पोस्ट के लाल डब्बे का, छत पर इतराते एंटीना के खम्बे का, बच्चों के मनपसंद मेलों का,छत पर होने वाले खेलों का, परिवार को बांधते टेलीफोन के तार का, टेलीफोन बिल चुकाती लम्बी कतार का,मंदिर की घंटी जैसी सनसनाती रिंग-टोन का,घर की गद्दी पे धाक जमाते भारी टेलीफोन का, 1990 का वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...By Deepak Jain
By Deepak Jainसोचते-सोचते हम बीते कल वाले समां में पहुंचे,यादों का बक्सा ले गली कूचे वाले पुराने मकाँ में पहुंचे,1990 के दूसरे वर्ष के तीसरे माह में पहुंचे,अतीत की गलियों के जाने-पहचाने उस परगना में पहुंचे,जैसे सुखद स्मृतियों के सातवे आसमाँ में पहुंचे.. वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...सुपर-हिट फिल्म वाले इतवार का, कॉलेज के अंदर पंहुचे फ़िल्मी बुख़ार का,बहन-भाई के झगड़ो का, हीरो-विलियन के लफ़ड़ों का,सचिन की ज़ोरदार बल्लेबाज़ी का,टीवी कलाकारों की ज़बरदस्त ड्रामेबाज़ी का,वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...ताल पे सरकती म्यूजिक कैसेट के रील का,लता के गीतों पे थिरकती बेबाक़ भीड़ का,'रुकावट के लिए खेद है' वाली लाइन का, डेनिम कपड़ो वाली डिज़ाइन का, हीरो के लंबे बाल का,विलियन की शातिर चाल का,वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...बिना गूगल मैप के पता ढूंढ़ने का,छोटी-बड़ी खिटपिट में मज़ा ढूंढ़ने का,मंडियों में, बाज़ार की हर दूकान का, ऑनलाइन मार्केटिंग से दूर हर सामान का, इंटरनेट से दूर, मोबाइल के अभाव का,मेलजोल की गलियों का, सादगी के गांव का,वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...मुस्कुराते पोस्ट के लाल डब्बे का, छत पर इतराते एंटीना के खम्बे का, बच्चों के मनपसंद मेलों का,छत पर होने वाले खेलों का, परिवार को बांधते टेलीफोन के तार का, टेलीफोन बिल चुकाती लम्बी कतार का,मंदिर की घंटी जैसी सनसनाती रिंग-टोन का,घर की गद्दी पे धाक जमाते भारी टेलीफोन का, 1990 का वह दशक, वह दौर था, वह ज़माना कुछ और था...By Deepak Jain
Comentarios