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खत

By Chinmay Kakade


खींच लिया अलमारी से आने वाली खुशबू ने मुझे, खोल कर देखा तो ख़त पड़ा

था तुम्हारा वहां

पढ़ने लगा मैं उसकी हर एक लकीर को, कुछ टेढ़ी थी, कुछ थी सुदौल, अल्फाज़

ऐसे थे उसमें जो समा सकता था मेरा पूरा जहां


सारे ख़त पढ़कर जा चुके अपने लिफाफे में सूरज की रोशनी उन पर पड़ने से

पहले

पर मिला नहीं खत तुम्हारा जो भेजा था तुमने सबसे आखिर में


मिला तो बस एक खाली लिफाफा, जिस पर नाम था तुम्हारा लिखा

महसूस किया मैंने उस कागज को, सिकुडा हुआ था वो हर उस जगह से जहां

आंसू पड़े थे तेरे


आज तक पता नहीं उस लिफाफे में क्या लिखा होगा तुमने, कासिद से ही पूछ

लेता पर वो मेरा सागा कहां

आज भी रुका हूं उस एक दिन के लिए जब खाली लिफाफा ना भेज कर खत

के जवाब में तुम आओगी


By Chinmay Kakade




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