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औरत

By Swayamprabha Rajpoot


शरारत हूँ, हिफाज़त हूँ...मत छेड़ो बगावत हूँ...

मैं आँखों की शराफत हूँ, मैं होठों की शिकायत हूँ...

ना मुझसे कठिन कोई, मैं दुनिया की नजाकत हूँ...

मोहब्बत की मैं सूरत हूँ, मुझसे ही ये नफरत है...

मैं क्रोधग्नि भी बन जाऊँ, मैं छोटी सी शरारत हूँ...

बिना मेरे नहीं कुछ है, हर घर की मैं दौलत हूँ...

मुझसे ही ये जहाँ सारा... मैं औरत हूँ....हाँ औरत हूँ...


तुम्हारा मान भी हूँ मैं, कभी अपमान भी हूँ मैं...

मकान को घर बनाये जो, घरों की शान भी हूँ मैं...

मैं चाहूँ तो सह लूँ, दुनिया में जितने भी गम हैँ...

सहनशक्ति इतनी ,कि सारे ही कम हैँ...

ललकारना मत मेरी इज्जत, आबरू को...

स्वाभिमान रक्षण हेतु संहार कर दूँ,इतना भी दम है...


कभी विध्वंस भी हूँ मैं, किसी का वंश भी हूँ मैं...

ला दूँ प्रलय संसार में, प्रलय का अंत भी हूँ मैं...

हूँ मैं ही कुल का गरिमा भी, कभी एक कलंक भी हूँ मैं...

बड़ी है सादगी मुझमें, इंद्रधनुष के सब रंग भी हूँ मैं...

मैं ही हूँ समस्त जीवन, जीवन का अंश भी हूँ मैं...


मैं सीता भी, मैं ही काली... मैं मीरा हूँ मैं झलकारी...

कभी मैं त्याग की मूरत, कभी गोपी सी मतवाली...

कभी राधा कभी शबरी ,अहिल्या मैं, हूँ मैं दुर्गा...

कभी द्रोपदी बनकर बदले की ज्वाला मुझमेँ है...

कभी सब कुछ मेरा हो, केकयी सा हत्यारा मुझमेँ है...

कभी जोगन भी बन जाऊँ, कभी रति सी लहराऊं...

कभी लक्ष्मी, कभी शारदा कभी नियति भी मैं बन जाऊँ  

मुझसे ही है ये तपन, कभी छाया सी मुस्काऊं...

किसी कृष्ण को बचाने के लिए योगमाया भी बन जाऊँ...

गर मांगो प्रेम से, मैं खुद समर्पित हूँ...

गर समझो फूल तुम मुझको, मैं खुद से ही अर्पित हूँ...

मगर गर छीनना चाहो,हो पाने की तुम्हारी ज़िद...

स्वाभिमान समझो या इसे अभिमान समझो तुम, पर गर बात मेरी है मैं कांटा हूँ मैं पर्वत हूँ ...


माँ, बेटी, बहू, बहन और पत्नी हर रिश्ता निभाती हूँ...

हो परिस्थिति प्रतिकूलित भी, मैं सबमें ढल जाती हूँ...

लाऊँ मुस्कान फिर भी कई दफा आँसू बहाती हूँ...

मैं हूँ बड़ी भोली, क्षण में सब भूल जाती हूँ...

बड़ी चंचल हूँ,कभी सारी अपनी बातें मनवाती हूँ...

कभी दर्द सहते-सहते भी ना कुछ बोल पाती हूँ...

मैं शीतल हूँ मैं ठंडक हूँ,मैं बाहर हूँ मैं अंदर हूँ...

घर भी मुझी से है, गर मैं रूठी तो खंडहर हूँ...


हर घर की मैं दौलत हूँ... मैं औरत हूँ,हाँ औरत हूँ...

ना मुझको चाहिए धन और दौलत ना सोने की भूखी हूँ...

मुझे सम्मान देता जो,मैं पूरी उसी की हूँ...

तुम्हारा ध्यान रखूंगी,गर मुझ पर ध्यान दोगे तुम...

हूँ मैं त्याग की मूरत,गर साथ दोगे तुम...

तुम्हारे घर को मैं मकान बना दूँगी बिना बोले...

गर कुछ प्रशंसा के बोलों को मेरा नाम दोगे तुम...

न्योछावर हूँ, समर्पित हूँ... अगर सम्मान दोगे तुम...

सब विध्वंस कर दूंगी, अगर अपमान दोगे तुम...

मीठे बोल मिल जाए, तो अपनापन सा लगता है...

मेरे संग हर पल शख्स को बचपन सा लगता है...

ममता की मूरत हूँ,मैं सबका ख्याल रखती हूँ...

पर याद रखना स्वाभिमान का भी ध्यान रखती हूँ...

मुझको फूल समझकर,ना सोचना कि कुचल कर फेंक दोगे तुम...

मैं सीता से बनूँ दुर्गा,कितना ही वक़्त लगता है.


By Swayamprabha Rajpoot


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