By Santosh Kanoujia
मन के जज़्बात को, तुम्हारे एहसास को
काग़ज़ पर है रखती..
इंसान को इंसान से ज़्यादा,
ये कलम है समझती ।
भावनाओं को तेरी, जैसी संगत ने भिगोया
कलम ने शब्दों को,वैसी रंगत मे डुबोया
बिखरे तेरे ख्यालों के मोतियों को
कभी आंसूओं की कभी मुस्कुराहटों की, माला मे पिरोया ।
जो जुबां से बयां न हो पाया
विचलित मन जिसे भीतर ठहरा न पाया
दुविधाओं को बड़ी सुविधाओं से,
तेरे भीतर के संघर्ष को, कलम ने निष्कर्ष तक पहुंचाया ।
By Santosh Kanoujia
वाह!! उत्कृष्ट रचना , आनंद आ गया पढ़ कर।
क्या बेहतरीन ढंग से शब्दों को पिरोया है क्या लयात्मकता है!!
आप बहुत ही मधुर व सुखद लिखते हैं।
बहुत बढिया
काफी सुन्दर कविता है। 🫶🏻💕✨
आपकी कविता काफ़ी प्रेरणादायक है!
Nice lines..displaying power of writing..