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कलम

Updated: 6 days ago


By Santosh Kanoujia


मन के जज़्बात को, तुम्हारे एहसास को 

काग़ज़ पर है रखती..

इंसान को इंसान से ज़्यादा, 

ये कलम है समझती ।


भावनाओं को तेरी, जैसी संगत ने भिगोया

कलम ने शब्दों को,वैसी रंगत मे डुबोया

बिखरे तेरे ख्यालों के मोतियों को

कभी आंसूओं की कभी मुस्कुराहटों की, माला मे पिरोया ।


जो जुबां से बयां न हो पाया

विचलित मन जिसे भीतर ठहरा न पाया

दुविधाओं को बड़ी सुविधाओं से,

तेरे भीतर के संघर्ष को, कलम ने निष्कर्ष तक पहुंचाया ।


By Santosh Kanoujia



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7 Comments

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Rated 5 out of 5 stars.

वाह!! उत्कृष्ट रचना , आनंद आ गया पढ़ कर।

क्या बेहतरीन ढंग से शब्दों को पिरोया है क्या लयात्मकता है!!

आप बहुत ही मधुर व सुखद लिखते हैं।

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sumit preeti
sumit preeti
2 days ago
Rated 5 out of 5 stars.

बहुत बढिया

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Ashwani
Ashwani
2 days ago
Rated 5 out of 5 stars.

काफी सुन्दर कविता है। 🫶🏻💕✨

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Sumity
Sumity
3 days ago
Rated 5 out of 5 stars.

आपकी कविता काफ़ी प्रेरणादायक है!

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Sunder Lal
Sunder Lal
3 days ago
Rated 5 out of 5 stars.

Nice lines..displaying power of writing..

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