By Manushree Mishra
सुनो साथियों,
आज मेरी खोज पूरी हुई। मेरी अभी तक की खोज पूरी हुई।
जीवन 'एक हेडलाइट' वाली स्कूटी पेप पर चलना है। रास्ते पर स्ट्रीट लाइट भी नहीं होगी। जब ओस से भरा अंधेरा
होगा तब हमें स्कूटी की लाइट जहाँ तक जाती है वहीं तक दिखेगा। तो मुझे वहां तक दिख गया। मैं पहले उससे ज़्यादा
प्रकाश के लिए भाग रही थी। सामने जो दिख रहा था, उसको हाथ से किनारे करके भाग रही थी । यह जानते हुए भी
की सुबह भी होती है, सूर्य टहलने भी निकल जाता है, बारिश भी होती है, इंद्रधनुष भी दिखता है, गड्ढे भी मिलते हैं,
रास्ते बारिश में भीगे भी होते हैं,हरी नरम घास भी मिलती है, सब तो होता है रास्ते पर.... यह जानते हुए भी मैं ऊपर
देखकर स्ट्रीट लाइट मांग रही थी। बार-बार। हर दिन।
मेरे मन में यह भी ख़्याल आया कि यह कोई व्यक्ति पार करवा देगा। जो उलझा है उसको सुलझा देगा....खोज
खोजकर ... कंधों से पलटा पलटा कर .... उनकी दर में जा-जाकर ... मैंने ढूंढा... खोजा ... बहुत खोजा... भागती रही।
मां को छोड़कर... आत्मा की मां को छोड़कर...यार को छोड़कर... प्यार को छोड़कर.... सब छोड़ा... उसे खोजने...
आज खोज पूरी हुई; उतनी जितना दिखता है हेडलाइट से । उतना ही तो हर क्षण जानना है मुझे। चलते हुए पेप पर।
और फिर ....
सूर्य कभी अस्त नहीं होता।
आज ईश्वर ने मेरे साथ यात्रा की। मैं उसके पीछे बैठी थी। वह मेरी स्कूटी पेप चला रहा था। उसे पता है कि मुझे मुड़ने
से कितना डर लगता है। उसने बेहद आराम से गाड़ी चलाई। मैं निश्चित थी । मुझे गिरने का भय नहीं था। मुझे स्ट्रीट
लाइट की ज़रूरत नहीं थी। मेरी स्कूटी ईश्वर चला रहा था। और मैं सांस ले रही थी। मुझे सूर्य दिख रहा था। मैं आंखें
मूंदकर ,चेहरे पर पड़ती बूंदों को महसूस कर रही थी। प्रकृति ने बता दिया कि मैं ईश्वर के साथ हूँ।
प्रकृति आपको बताएगी कि आप ईश्वर के साथ हैं। मैं खोजी हूँ। यह भी प्रकृति ने बताया.... हम सब स्वयं को बचा
सकते हैं।
क्योंकि, हम हैं भी?
आज मेरी एक बड़ी खोज पूरी हुई।
By Manushree Mishra
AMazing
❤Wonderful
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