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ठहर

By Prabhneet Singh Ahuja


तितलियां उड़ी जा रही हैं

बाग़-ए-बगीचों में बैठे हम,

यूँ मुस्कुरा रहे है,

अकेले, ख़ुद ही में बैठे बस हम,

ना शोर, ना शराबा

धुन गुनगुनाते रहते बस हम;

पत्तों का झिझकना,

बातों का बिगड़ना

गुलों के इंतज़ार में रहते बस हम;

शाम भी निखर आई,

चांदनी भी खिल उठी

उठने का वक़्त हो आया 

पर,

इन्हीं बाग़,

इन्हीं बगीचों मे

यूँ ही बैठे रहे हम।


By Prabhneet Singh Ahuja

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anh hai
anh hai
3 days ago

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