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माँ

By Aashish Thanki


फिर से सिर सहला दे

तेरी गोद में सुलादे

कान पकड़ के पास बिठा दे

आज कल नींद नहि आती माँ


भटक रहा पैसों की चाह में

चोट जो लगी इन राहों में

फिर से पट्टी लगा दे

आज कल ज़ख़्म नहि भरते माँ



आलीशान होटेल के खाने में

वो स्वाद कहाँ मिलेगा

फिर से दाल चावल खिला दे

आज कल पेट नहि भरता माँ


वो बचपन की कहानी

वो मस्त चुटकुले

वो पहेलियाँ फिर से बूज़ा दे

दफ़्तर की बातों से मन नहि भरता माँ


तेरी गोद में सुलादे

आज कल नींद नहि आती माँ


By Aashish Thanki





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2 komentáře

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manesh dhanani
manesh dhanani
12. 9. 2023
Hodnoceno 5 z 5 hvězdiček.

Good one

To se mi líbí

Parul Thanki
Parul Thanki
12. 9. 2023
Hodnoceno 5 z 5 hvězdiček.

Very nice

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