top of page

सदा

By Sandeep Sharma





सहरा में जैसे सराब नज़र आ रही है

ज़िन्दगी हाथों से फिसलती जा रही है

अब मैं बिखरी हसरतों को समेटूं भी तो कितना

चाक-दामन से ख़ुशियाँ निकलती जा रही हैं

एक तेरा ही सहारा है अब मेरे हम-नवा

क्या तुझ तक मेरी सर्द आह आ रही है


रफ़्ता-रफ़्ता बुनता रहा जिस ज़ीस्त की चादर को

वही मैली चादर अब सिमटती जा रही है

राएगाँ न हो ये ज़िन्दगी का सफ़र एक मुलाक़ात तो कर

हाल से मेरे हो तू भी वाक़िफ़ दिल से यही सदा आ रही है

किन मरहलों से गुज़र रहा हूँ मैं मेरा यक़ीन तो कर

अब ना जीने का है मज़ा और न मौत आ रही है


By Sandeep Sharma




88 views3 comments

Recent Posts

See All

Love

By Hemant Kumar जब जब इस मोड़ मुडा हूं मैं हर दफा मोहब्बत में टूट कर के जुड़ा हूं मैं शिक़ायत नहीं है जिसने तोड़ा मुझको टुकड़े-टुकड़े किय...

3 Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
Krishan Kashyap
Krishan Kashyap
Nov 29, 2022

Right! Today is a gift, so we call it present. 🤗

Like

FR Kuldeep Singh
FR Kuldeep Singh
Nov 27, 2022

Very nice bro keep it up

Like

Balram Jamdegni
Balram Jamdegni
Nov 19, 2022

Sahab jindgi h ye pakdo nhi bs jiyo

Like
bottom of page