By Avaneesh Singh Rathore
तुम्हें इश्क है, मुझे हवस सही
तुम्हे है सुकून , मुझे वश नहीं
तुम्हें है भविष्य की समझ सही
मुझे नहीं वर्तमान की खबर कोई
मुझे नहीं मिला कर्म का लेखा जोखा
जाने किस अच्छे कर्म ने तुम्हे खोजा
डोर टूटी है ,जरूर टूटी है
इश्क तो मजबूत, किस्मत रूठी है
पृथ्वी के गर्भ से, आसमां की तह में
छुपा कर एक करिश्मा तुम्हें रखा है
जो कायनात में जुनून है,त्योहार क्या तुम हो
या सब समझ गए, अपूर्व स्रोत तुम हो
मूल इश्क की तुम उपासक
हम तो केवल नीच है
तुमको मिलेगा वरदान अगर तो
हमें मिलेगी तुच्छ भीख ही
तुम्हें है कुछ , की नजरिया बदल दोगी
हमें तो समझ नहीं, क्या जरिया दोगी
जो तुम कहीं समान नहीं
हम तो देखो आम सही
तुम्हें पहुंच की कीमत बहुत
हम बिक जाएं , पर ग्राहक नहीं
तुम एक ऐसा सवाल सी मालूम हुई
जिसका कोई अलौकिक जवाब नहीं
फिलहाल तो तुमसे कह ही दूं, कैसे कहूं
चलो ठहरो कुछ मर्तबा , अगली बार शायद कहूं
By Avaneesh Singh Rathore
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