By Shivansh Soni
ऐ मन मान जा क्यों और दर्द सहना चाहता है
क्यों और सपने सजाता है जब पुराने ही पूरे नहीं कर पाता है
क्या तुझे पता नहीं की हर अधूरा सपना एक घाव खुला छोड़ जाता है
ए मन मेरे क्यों खुद को चोट पहुंचाता है
क्यों छोड़ता नहीं पुराने घाव कुरेदना क्यों नयें के लिए जगह बनता है
अब तो यह शरीर तेरा बाण शय्या पर लेटे पितामह भीष्म की याद दिलाता है
ऐ मन मान जा क्यों फिर उस दर्द से गुजरना चाहता है
नजरंदाज कर उन घावों को वक्त के साथ हर घाव भर जाता है
चाहे कितना भी सुनहरा हो नया सपना तेरा टूटे सपनों की जगह नहीं ले पता है
ऐ मन मेरे मान जा अब वोह रहा नहीं जिसे तू चाहता है
By Shivansh Soni
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