By Kishor Ramchandra Danake
पिछला हफ़्ता काफी दुःख भरा था। पिछले बुधवार को प्रार्थना भी नही हुई थी। इस बुधवार को फादर और उनका परिवार बस्ती वालों से मिलने आए थे।
कौतिक अभी भी वापस नही लौटा था। किसन ने उसे फोन किया था। लेकिन कौतिक उस पहाड़ी में अपनी मां का इंतजार कर रहा था। क्योंकि उसकी मां कही चली गई थीं। और वो कब लौटेगी इसका अंदाजा किसी को भी नही था। क्योंकि वो किसी को बिना बताए अक्सर ही अपने सफर पर चली जाती थीं। कौतिक अपने वहा के रिश्तेदारों के साथ ही रह रहा था। वहा कोई भी अपने पास फोन नही रखता था। वे लोग अपने आपको जितना हो सके उतना छुपाके ही रखते थे।
आज शनिवार का दिन था। बच्चे सुबह सुबह ही स्कूल गए हुए थे। क्योंकि शनिवार के दिन उनका स्कूल सुबह ८ बजे ही भरता था। सब अपने अपने काम में लगे हुए थे। लेकिन नाहीं कोई खुशी थी और नाहीं कोई शोर था। शांताराम की लड़कियां अपनी मां सुंदरा के साथ घर के बाहर आंगन में बैठी हुई थी और श्रावण भी उनके साथ ही बैठा हुआ था।
मैरी भी दुःख में ही थी। उसकी राते अब और भी जादा डरावनी होती जा रही थीं। उसे ठीक से नींद भी नहीं आती थी। वह ऐसा महसूस कर रही थी जैसे सुलेखा उसपर और भी जादा हांवी होते जा रही है और वह खुदपर अपना काबू खो रही है। शांताराम के मौत का जिम्मेदार मैरी खुद को ही मान रही थीं। लेकिन वह इस सोच में भी थी की आखिर क्यों उसकी नानी ने सुंदरा को मारने की कोशिश की थी। आखिर क्या है वह अतीत की बात जो उससे छिपी हुई है। उसने यह सवाल काफी बार सुलेखा से पूंछे। लेकिन उसे उनके जवाब नही मिले। सुलेखा उसे बस यही कहती थी की जब सही वक्त आएगा तब तुम्हे सब पता चल जायेगा। मुझपर बस यकीन करो। मैरी दिन रात बस अपने कमरे में सोचते हुए बैठी रहती थी। शांताराम की धुंधली सी बाते उसके आंखों के सामने घूमती रहती थीं। शांताराम का डरना और उसका नीचे गिरना। वह परेशान थी की आखिर यह बाते किस के साथ बांटे और कैसे बांटे? इसलिए वह और भी जादा परेशान थी।
बेड पर बैठे बैठे इस सोच में अचानक से उसे सुलेखा की आवाज़ सुनाई दी।
“मैरीss।“, सुलेखा ने कहा।
मैरी डर गई।
उसने कहा, “अब क्या है? आप यह सब क्या कर रही हो?”
“कुछ नही मेरी बेटी मैं तो बस तुम्हारा अच्छा कर रही हूं।“, सुलेखा ने कहा।
“यह ठीक नही है।“, मैरी ने कहा।
“यही ठीक है मेरी बेटी। और हा मैं सब ठीक कर दूंगी। बस तुम मुझपर यकीन करो। तुम्हे सारी बाते जल्द ही पता चल जाएगी।“, सुलेखा ने कहा। और तुरंत ही वह उसपर हांवी हो गई। वह उठी और उसने अपने खिड़की से बस्ती पर एक नजर डाली। उसने देखा की सब अपने काम में लगे हुए है। श्रावण अपनी बहन के साथ बैठा हुआ था। दगड़ू कब्रस्तान की ओर अकेला ही घूम रहा था।
वह अपने बिस्तर पर बैठ गई। दो पल के बाद वह फिर से उठी। वह अब मैरी नही बलकि सुलेखा थी। वह अपने कमरे के बाहर निकली। नीलम ने ऊपर से मैरी को देखा। उसके हाथ में वही ‘आशीष या श्राप’ नामक किताब थी।
“कहा जा रहे हो मैडम?”, नीलम ने कहा।
मैरी अचानक से डर गई। उसने कहा, “मैंss अंs यही कब्रस्तान के पास जा रही हूं। कुछ समय के लिए। पिताजी और मां के पास। कोई काम था?”
“नहीं मैडम। ऐसे ही पूछा।“, नीलम ने कहा। और वह अपने कमरे में चली गई।
मैरी भी कमरे से बाहर कब्रस्तान की ओर बढ़ने लगी। श्रावण अपनी बहन के साथ बाते कर रहा था इसलिए उसे पता भी नही चला की मैरी कब उसके पीछे वाले रास्ते से गुजरी।
सुलेखा ने कब्रस्तान पर अपनी एक नजर डाली और वह नीम के पेड़ के नीचे उस सीमेंट से बनी दो फीट ऊंची जगह पर बैठ गई।
अब जो देख रही थी और महसूस कर रही थी वह सुलेखा थी।
दगड़ू वही उस कबरस्तान के पास बैठा चुड़ैल के बारे में बडबडा रहा था।
सुलेखा ने उसे आवाज दी, “दगड़ू!”
दगड़ू ने सुलेखा की ओर देखा।
“क्या शाप दिया था तुम्हे उस चुड़ैल ने?”, सुलेखा ने कहा।
“उसने कहा था की तुम पागलों की तरह भटकोगे। लेकिन देखो क्या मैं पागल हूं?”, दगड़ू ने कहा।
सुलेखा की आंखे अब लाल हो गई थीं। उसकी आंखे जैसे आग से भर गई थी।
“हां तुम पागल नहीं हो।“, सुलेखा ने कहा। और एक ताली बजाई।
उस ताली की आवाज सुनते ही दगड़ू एक जगह पर स्थिर खड़ा रहा और वह सुलेखा की ओर देखने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी के वश में था और अभी फिर से आजाद हो गया हो। सुलेखा बैठी थी और वह उसके सामने खड़ा था।
“बताओ क्या तुम्हे सुमित्रा चुड़ैल लगती थी?”, सुलेखा ने कहा।
यह सुनते ही वह डर गया।
“हां। मैने उसे देखा था जादू टोना करते हुए उनके खिड़की की दरार से। वह मेरी बहन सुंदरा को मारने वाली थी की तभी मैंने उसे रोक लिया था। हां वह एक चुड़ैल ही थी।“, दगड़ू ने डरते हुए कहा।
“तो तुम कौन हो? मुझे सब पता है की तुमने क्या किया था? मेरी बेटी सुमित्रा चुड़ैल नही थी। सुमित्रा जो भी कर रही थी वह सुमित्रा नही बलकि वो मैं थी जो उसके अंदर थी।“, सुलेखा ने कहा।
दगड़ू अब और भी जादा डर गया। वह बस सुलेखा को ही देख रहा था
“तुम्हारी बहन को तो तुमने तब बचा लिया था। लेकिन क्या अब उसे बचा पाओगे?”, सुलेखा ने कहा।
“लेकिन – लेकिन कौन हो तुम? सुमित्रा की कोई मां नही थी वो तो अनाथ थी।“, डरते हुए दगड़ू ने कहा।
“मैं उसकी मां हूं।“, सुलेखा ने कहा।
“क्या मां?”, चौंकते हुए दगड़ू ने कहा।
“हां उसकी मां। और मैं ही थी जो वह सब कर रही थी।“, सुलेखा ने कहा।
दगड़ू की आंखे अब बड़ी हो गई थी। उसके चेहरे पर डर तो था लेकिन हैरानी के भाव भी थे।
“चलो आज तुम्हे एक सच्चाई बताती हूं। वो मैं ही थी जिसने अपनी विद्या से शंकर की पत्नी उर्मिला को मार डाला था। और वो मैं ही थी जिसने श्रावण की पत्नी कमला को भी अपनी विद्या से मार डाला था।“, सुलेखा ने कहा। और हंसने लगी।
“क्या तो वो बीमार तुम्हारे जादू टोने की वजह से हुई थी। तभी हम हैरान थे की कोई भी दवा और कोई भी विद्याएं उनपर काम नहीं कर रही थी।“, दगड़ू ने डरते हुए कहा। “लेकिन तुम हो कौन?”
“मेरा नाम है सुलेखा। और मैं जेबेल मां की वंशज हूं।“, सुलेखा ने कहा।
यह सुनते ही दगड़ू और भी डर गया। उसकी सांस फूलने लगी।
“सुलेखा!!!! क्या तुम उस पहाड़ी में रहने वाले उस तांत्रिक की बेटी तो नही हो? जिसे दो बेटियां थी? एक का नाम मुद्रुखा और एक का नाम सुलेखा।“, डरते हुए दगड़ू ने कहा।
सुलेखा हंसने लगी। उसने कहा, “अच्छा तो तुम उन्हे जानते हो? हां मैं वही सुलेखा हूं। लेकिन हैरानी की बात है की तुमने नाम सुनते ही अंदाजा लगा लिया हां।“
“हां! मैं ही नही कोई भी अंदाजा लगाता और सिर्फ मैं ही नही हमारे सारे भाई और यहां आने से पहले हम हमारे कबीले के साथ रहते थे वहा के सारे लोग तुम लोगों के बारे में जानते है।“, दगड़ू ने कहा। “लेकिन तुम तो मर गई थी ऐसा सुनने में आया था।“
“हां! मैं मर गई थी। लेकिन मैं वापस आ गई। यह बोहोत पुरानी कहानी है। तुम्हे यह जानने की कोई जरूरत नहीं।“, सुलेखा ने कहा। “अच्छा। बताओ मुझे की तुम्हारा कबीला कहा है?”
“हमारा ‘वेलान’ कबीला है। वही तुम्हारे पहाड़ी से थोड़े ही दूर जंगली इलाकों में हमारी बस्ती है।“, दगड़ू ने कहा।
कबीले का नाम सुनते ही सुलेखा का चेहरा उतर गया। वह गुस्से से भर गई।
“अच्छा तो तुम उस ‘वेलान’ कबीले से हो जिन्होंने मेरे पति को मार डाला था। मेरे पति भी तुम्हारे ही कबीले के थे।“, सुलेखा ने कहा।
“क्या? इन बातों के बारे में मुझे कुछ भी नही पता। मैने तो बस तुम्हारे बारे में सुना था। तब तो हम बोहोत छोटे थे।“, दगड़ू ने कहा।
“तुम्हारा कबीला लोगों के भावनाओं के साथ खेलता है और उनकी भावनाओं से अपनी शक्तियां बढ़ाता है। तुम्हारे पास वही सारी विद्याएं है। मैने सही कहा ना?”, सुलेखा ने कहा।
“हां! तुमने सही कहा। लेकिन हमारे बड़े भाई शंकर के अलावा हमने किसी ने भी कोई विद्याएं नही सीखी है।“, दगड़ू ने कहा। “हमे छोड़ दो। हमे माफ कर दो।“
दगड़ू अब रोने लगा और गिड़गिड़ाने लगा। सुलेखा उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। लेकिन यह मुस्कुराहट अब साधारण नही रही। उसमें एक खौफ था। ऐसी मुस्कुराहट देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते थे।
“अच्छा ठीक है। तुम्हे भी तुम्हारे बहन के पति जैसी आसान मौत देती हूं।“, सुलेखा ने कहा।
दगड़ू फिर से चौंक गया। उसने कहा, “क्या? क्या शांताराम मर गया? क्या तुमने उसे मार दिया?”
वह गुस्सा हो गया।
“क्या तुमने कभी किसी को तड़पते हुए मरते देखा है? जैसे कोई अपनी जान बचाने के लिए बोहोत ही संघर्ष कर रहा हो। खुद को बचाने के लिए अपने हाथ पैर झटपटा रहा हो? मुझे पता है की तुमने देखा है। तुम सब के सब वैसे ही तड़प तड़प कर मरोगे। तुम खुद को बचाने के लिए झटपटाओगे लेकिन तुम्हे सुकून की मौत नसीब नही होगी।“, सुलेखा ने कहा। अब उसके आंखों में आंसू आने लगे थे और वह बोहोत गुस्से में भी थी।
दगड़ू सुलेखा की ओर ही देख रहा था। वह बोहोत डरा हुआ और गुस्से में भी था। अचानक से वह सुलेखा को पकड़ने के लिए झपटा लेकिन उसी वक्त सुलेखा ने फिर से ताली बजाई। वो वही स्थिर खड़ा रहा और फिर से दो पल के बाद अपनी वही पहली वाली बाते दोहराने लगा। “उस चुड़ैल ने मुझे......” जैसे वह फिर से किसी के वश में आ गया हो।
सुलेखा ने कहा, “नरक के लिए एक और तोहफा।“
इतना कहते ही दगड़ू वही बाते बड़बड़ाते हुए तेजी से रास्ते पर बंगले की ओर चलने लगा। श्रावण ने और सुंदरा ने उसे दौड़ते हुए देखा। वह दौड़ते दौड़ते सीधे उसी कुंवे में कूद गया जिस कुंवे के पास शांताराम को दिल का दौरा आया था। जो मैरी के बंगले के पीछे ही था। श्रावण और सुंदरा और सुंदरा की लड़कियां वह सारे बूढ़े लोग चिल्लाते हुए उसकी ओर दौड़ पड़े।
उधर से विलास, रोशनी, अर्जुन, उत्तम, आलका भी डरते हुए दौड़ पड़े। नीलम भी बंगले से बाहर आई। उधर से मैरी भी चली आ रही थी।
दगड़ू पानी के अंदर अपनी जान बचाने के लिए हाथ पैर हिला रहा था। लेकिन वह दौड़ते दौड़ते थक चुका था और अब उसने अपनी ताकद गवा दी थी। विलास ने एक लंबी रस्सी लाई और उसने उस रस्सी को पास के पेड़ से घट्ट से बांधकर बाकी की रस्सी नीचे पानी में छोड़ दी। उसके सहारे वह नीचे उतर गया। दगड़ू अब डूब चुका था। विलास ने उसे पकड़कर पानी से ऊपर निकालकर उसका मुंह खुले हवा में बाहर निकाला। उसकी आंखे बंद हो गई थी और वह बेहोश हो गया था।
अर्जुन और उत्तम ने रस्सी को जोर से खींचा और उन्हे बाहर निकाला। दगड़ू की सांसे अब भी चल रही थी। विलास ने दगडू की छाती को जोर से दबाया और सारा पानी निकालने की कोशिश की। दगड़ू ने आंखे खोली और फिर से बंद कर ली। वह बोहोत कमजोर हो गया था। उसको उठाकर वे राजेंद्र के घर में लेकर आए।
सारे वही आसपास ही खड़े थे। उसके कपड़े बदलकर उसे खाट पर लेटा दिया। दादाभाऊ अचानक से रोने लगे। और कहने लगे, “यह क्या हो रहा है हमारे साथ। शैतान ये क्या काम कर रहा है? हे येशु मसी हमे बचाओ।“
श्रावण बाहर ही खड़ा था। वह चुपचाप मैरी को गौर से देख रहा था। वह उपरसे शांत तो था लेकिन उसके अंदर ही अंदर समुंदर जैसी लहरे उठ रही थी। वह सोच में था की आखिर ये हो क्या रहा है? क्या इन बातों से मैरी का कोई वास्ता है या फिर यह बस इत्तेफ़ाक है। उसे क्या करे और किस के साथ इसके बारे में बात करे कुछ समझ नहीं आ रहा था। सुमित्रा और उनसे जुड़ी जो अतीत की बातें जानते थे उनमें से बस दगड़ू, इठाबाई और सुंदरा ही बचे थे। शंकर, उर्मिला, कमला और शांताराम तो अब गुजर चुके थे। उनके बच्चों से और सबसे उन लोगों ने यह सारी अतीत की बाते छुपाई थी। मैरी भी बाहर खड़ी थी। उसने सबकी ओर देखा और फिर आखिर में श्रावण की ओर। उसकी आंखों में देखते ही उसे खौफ महसूस हुआ। फिर मैरी अपने बंगले की ओर चल पड़ी।
सुलेखा ने मुस्कुराते हुए कहा, “बच गया। वैसे भी मुझे इसे मारना नहीं था। यह मेरी ताकद का और मेरी पहचान का निशान पीछे छोड़ेगा।“
फिर वह अपने कमरे में आई और अपने बेड पर बैठ गई। वह अब अपने सामान्य स्थिति में आ गई थीं। वह मैरी थी। उसकी आंखे पानी से भर गई थी।
वह सोच रही थी की कौतिक के पास फिर से एक बार जाए और उसे यह सब बाते बताएं। लेकिन वह हैरान भी थी की कुछ तो बोहोत बुरा हुआ था उससे और उसके वजूद से जुड़ा। लेकिन उन बातों से वह अभी भी अंजान थी। इसलिए वह बार बार अब जानने के लिए सुलेखा से पूछती लेकिन उसे जवाब बस ‘इंतजार करो’ यही मिलता था।
अब रात हो गई थी। दगड़ू वही अपने बिस्तर में सोया हुआ था। वह बीच बीच में अपनी वही बाते दोहराता रहता था। बस्ती में अब जादा आवाजे भी नही थी। सब लोग परेशान भी थे। नीलम और श्रीकांत अपने कमरे में बैठे हुए आज की घटी घटना के बारे में चर्चा कर रहे थे। अक्षदा और प्रज्ञा भी अपनी अपनी पढ़ाई कर रही थी।
“रानी! तुमने जो सुबह तुम्हारा सपना बताया था की कोई आदमी पानी में डूब रहा है और खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है। उस सपने का मुझे लगता है आज की घटी घटना से जरूर संबंध है। क्योंकि देखो दगड़ू दादाजी भी कुंवे में गिर गए थे।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां पनू! मुझे भी यही लगता है। मैं उसी के बारे में ही सोच रही हूं।“, अक्षदा ने कहा। “मुझे मेरे सपनों पर अब ठीक से ध्यान देना होगा।“
“मेरे खयाल से तुम्हे फादर के साथ यह बाते जल्दी शेयर करनी चाहिए।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां! मुझे भी यही लगता है पनू। लेकिन आगे देखते है अगर कोई सपना आता है तो मैं उनके साथ जरूर बात करूंगी।“, अक्षदा ने कहा।
“रानी सुनो, तुम्हारे क्लास में कोई सोनाली नाम की लड़की है?”, प्रज्ञा ने कहा।
“अरे पनू वो मेरे साथ ही बैठती है। हम एक ही बेंच पर बैठते है। उसकी बहन मोनाली तुम्हारे ही क्लास में है ना शायद?”, अक्षदा ने कहा।
“अरे रानी वो आज ही मेरे बेंच पर बैठने आई। उसका उसके साथ बैठने वाली लड़की के साथ कुछ जम नही रहा था। वो उसे बोहोत चिढ़ाती थी।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां! सोनाली को भी कोई कोई लड़कियां चिढ़ाती है। लेकिन मैं उन्हें चुप करा देती हूं। बेचारे गरीब है वो।“, अक्षदा ने कहा।
“हां! उसने कहा था की गोदावरी नदी के बड़े पुल के नीचे ही उनका घर है।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां! किसी दिन उन्हे हमारे घर बुलाएंगे। हम भी घूमते घूमते उनके घर जायेंगे।“, अक्षदा ने कहा।
“हां! पक्का जायेंगे।“, प्रज्ञा ने कहा।
अपना सिर हिलाते हुए अक्षदा ने सहमति दर्शायी।
“दर्शन ने अभितक वह मूलाखात वाला वीडीओ भी यूट्यूब पे नही डाला।“, प्रज्ञा ने निराशा भरी आवाज में कहा।
“हां! इतना सब चल रहा है। इसलिए शायद उसने नही डाला होगा।“, अक्षदा ने कहा।
“हां! बोहोत बुरा हो रहा है।“, प्रज्ञा ने कहा।
“अच्छा तो अब मैं सो जाती हूं।“, अक्षदा ने कहा।
“हां! शुभ रात्री।“, प्रज्ञा ने कहा।
रानी ने अपने ऊपर अपना कंबल ओढ़ लिया और वो फिर से अपने पिछले वाले और इस सपने के बारे में सोचने लगी। वह मैरी को लेकर भी थोड़ी सी परेशान थी। उसे इस बात कि भी संभावना लग रही थी की अचानक से घट रही इन घटनाओंके पीछे उस साया का ही हाथ होगा। वह सोच रही थी की एक बार मैडम से बात करे ताकि उसे कुछ और भी पता चले।
फिर सोचते सोचते वह अपने सपनों की दुनिया में चली गई।
By Kishor Ramchandra Danake
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