By Chanda Arya
‘ए’ और ‘बी’ दो दोस्त। ‘ए’ ने एक सपना देखा, खुली आँखों का सपना। उत्साह में भर ‘बी’ को बताया। दोनों प्रसन्न हो एक साथ बोले,”चलो सपना पूरा करते हैं”। सपना मूर्त रूप लेने लगा धीरे - धीरे। ‘ए’ ने उसे सजाया, संवारा, जैसा - जैसा सपने में देखा था वैसा -वैसा रूप दिया, चेहरा दिया। सपना पूरा हो ही रहा था, कि ‘डी’ का प्रवेश हो गया। जिसका अक्स अक्सर ही ‘बी’ में दिख जाता था। अब सपने के बारे में ‘बी’ के शब्द बस ‘डी’ की ही भाषा बोलने लगे। धीरे - धीरे ‘ए’ की आँखों से सपना फिसलने लगा। उसकी आँखों में खालीपन आने लगा क्योंकि उसका जाता था अब उसका न रहा वो ‘बी’ और ‘डी’ का सपना हो गया था। जो उसे अपने मन के अनुसार परिभाषित करने लगे थे। अब ‘ए’ का सपना उसका कहना नहीं मान रहा था। सच में, सपने कितने धोखेबाज होते हैं। किसी की आँखों को छोड़कर दूसरों की आँखों में बस जाते हैं। और ‘ए’ की आँखें अब कोई और सपना देखने में डरने लगी थीं।
By Chanda Arya
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