top of page

Abb-E-Chasam

By Birkunwar Singh


कैसे वो आब- ए-चश्म की कीमत जाने

जो खुद ही के मरने पर ना रोये

कैसे वो बुंद बुंद की कहानी को पढ़ते

जो आखें कभी पढ़ न पायें


सरकते आंसू भी महकने लगे हैं

यादें तेरी में ही आने लगे हैं

मैं भी उन्हें बहने देता हूं

अब साफ कर रुमाल से कुफ़र कमाने लगे है


आने लगा है मजा इस दौर-ए-हाजिर का

मत पूछो अब हाल इस बीमार मरीज़ का

ख़ुशी है आने लगेगी गम में साकी

आसुओं से ही रहेगा रिश्ता कबीर का


By Birkunwar Singh



2 views0 comments

Recent Posts

See All

दरमियान।।...

By Abhimanyu Bakshi ज़िंदगी है फ़ुरसत-ओ-मसरूफ़ियत के दरमियान, मैं खड़ा हूँ तसव्वुर-ओ-असलियत के दरमियान। एक हसरत थी दोनों में राब्ता...

अनंत चक्र

By Shivam Nahar वो थक के रुक के टूट जाए, जब नकारा जाए जीवन में और बांध फूटने दे देह का, जो शांत पड़ा है इस मन में, बस डाल दे हथियार सभी,...

इंतज़ार

By Vanshika Rastogi तुम्हे शायद इतना याद कभी न किया होगा, जितना मैंने इस एक दिन में किया है। तेरी कमी खलेगी इस दिल को, मगर एक आस भी...

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page