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Aek Rajneeti Aesi Bhi

By Yash Ghadiya


एक राजनीती  ऐसी भी  


बहुत सुन ली बड़े बड़े शहरों की कहानिया आइये में आपको लेके चलता हूँ उसी बड़े शहर की अंजान डगर  के किसी अपने घर में ........आइये .....

 आजकल के चुनाव में एकदम फ़िल्मी तरीके से पार्टी बदल जाती हैं....मानना पड़ेगा ..राजनीतिक चालबाज़ी तो एक नंबर की होती है इन् लोगो की .....वैसे आप सब बचपन में घर -घर तो जरूर खेले होंगे ...में भी खेलता था और में उसमे पप्पा बनता था पता नहीं क्यों मम्मी गुस्सा हो कहती थी यही खेल खेलने को मिला तुझे ?

बचपन

हमारे घर के बगल में एक लड़की रहती थी और हम दोनों पूरा दिन घर-घर खेलते थे।  वो मम्मी..में पापा और उसकी गुड़िया हमारी बेटी !बचपन में तो सभी 5 से 25 साल की लड़कियो को दीदी ही कहते थे हम ..तो में भी पूरा दिन "ख़ुशी दीदी ....ख़ुशी दीदी" .......पर जैसे जैसे में बड़ा हुआ मुझे पता चला इसको दीदी तो नहीं कहते... ना जी ना...

मैंने सिर्फ ख़ुशी करके बुलाना चालू किया ... वो भी मेरे ख़ुशी कहने पे हाथो से अपनी हंसी छुपाते हुए मुझे धक्का मारके कहती थी "बड़े बत्तमीज़ इंसान हो तुम"। बस मम्मी के सामने दीदी बोलना पड़ता था । उस दिन से 2 - 3 चीज़े हुए जैसे की मैंने अपने घर जाना बंध कर दिया ..पूरा दिन ख़ुशी के घर पड़ा रहता था ।  लंच बॉक्स साथ में खाने लगे ....स्कूल में उसकी पेंसिल से ही नोट के आखरी पन्ने पे उसके-मेरा नाम का पहला अल्फाबेट लिखता था और वो परेशान होके कहती थी "यार एकदम पागल ही हो यार मम्मी देख लेगी तो ??और वो अपनी टाय अपने दांतो से चबाने लगाती थी ....ख़ुशी  भी  मेरी पीठ पे अपने हाथो से मेरा नाम लिखती थी और पूछती थी बताओ क्या लिखा ? 

एक दिन घर पे खेलते खेलते गलती से मुँह से निकल गया सिर्फ " ख़ुशी " . . .मेरी मम्मी ने टेडी नज़र से मुझे देखा..मेरी मम्मी से आंखे चार हुए....मैंने सोचा गए आज तो....नया घर ढूंढो ...लेकिन उस दिन तो मम्मी कुछ नहीं बोली अगले दिन में अपने कमरे में बैठा बैठा खेल रहा था तभी मम्मी चिल्ला  के बोली की ..." बेटा इधर आना तो ...".हाँ ..आया......ओह्ह !! ख़ुशी तुम ..अच्छा आंटी भी आयी है..नमस्ते आंटी... किसी हो आप ?..मेरी बात बिच में काटके मम्मी बोलने लगी ... 

मम्मी - बहन जी आपको पता है ..बेटी तो लक्षमी का रूप होती है..और बिना बेटी का घर, घर नहीं मकान होता है मकान!!

में - वाह मम्मी ..सही कहा...

मम्मी- मुझे तो एक लड़की ही चाहिए थी यह तो हमसे गलती से हो गया है ..

में - क्या??..में गलती से ?

मम्मी - चुप बैठ !     पर बहन जी सच बताऊ तो आपकी ख़ुशी ने मुझे एक बेटी की इस निकम्मे   को एक बहन की कमी कभी महसूस नहीं होने दी ..क्यों बेटा ?   मैंने कहा क्या ! " बहन "👀???..मम्मी कहती... हाँ बोलो ...बेटा ?? !

में बोला हाहा ! .ख़ुशी  ....... ( शरमाते हुए )

मम्मी - (गाल पे एक ज़ोर का थप्पड़ पड़ा ) दीदी कौन लगाएगा साथ में  .....में बोला " हाँ ...दी......दी " 

पहले प्यार की पहली परीक्षा में नापास !   

२ दिन में ख़ुशी उसके परिवा परिवार के साथ कही दूर रहने चली गए ..उस दिन मुझे पता चला सबसे बड़ी राजनीति तो मम्मी ने खेली है...असली राजनीतिक चालबाज़ तो मम्मी लोग होती हैं ..


निर्वहन

उस दिन से मेरी मम्मी से नहीं बनती, हम दोनों का वो आग और पानी का रिश्ता था । 

मम्मी कहती हैं ..बेटा जरा नाके से दूध लेके आओगे? मुझे बहुत काम हैं ! 

मैंने कहा अपने पति से बोलो ना की लेके आये ..में तो वैसे भी गलती से हो गया हूँ और रसोड़े में से उड़ता हुआ 6 नंबर का चप्पल आया और गाल पे 9 नंबर छप गया । मेरे पापा के हिसाब से सभी चीज़ अभी अभी हुए होती है। मैंने पापा को कितनी बार बोला की पापा घूमने लेके चलो.. पापा का एक ही जवाब होता है "अभी तो गए थे "...जैसे तैसे करके पापा को मनाया और घूमने जाने क प्लान बन गया। अब जिस दिन निकलने वाले थे तभी दोनों में झगड़ा हो गया,

मम्मी कहती है किसी ने बॉम्बे के सपने दिखाके लखनऊ चिपका दिया ..पापा मुझे कहते है की बेटा ..मैंने कहा हां पापा ..वो बेटा तुम्हारे मामा का फ़ोन आया था और कह रहे थे की जमाई बाबू गलती हो गए हमसे ..

पापा - मैंने पूछा की अरे ..ऐसी कोनसी गलती ? तो कहते हे की ..वो भाईसाब आप 20 साल पहले कोयल की जगह कौआ लेके चले गए थे ..

पापा - (मम्मी की तरफ देखते हुए ) हाँ .. कब से काऊ काउ कर ही रहा हैं.... वापिस कर सकते हैं ? तो तेरे मामा बोले की दिया हुआ माल वापिस नहीं लेते।  

एक दिन की बात है में अपनी कॉलेज से घर आ रहा था तो रस्ते में अचानक से मेरे फ़ोन पे मैसेज आता है की "मुझे याद है? लंबे समय के बाद! वो मेसेज देखते ही मे बड़ा खुश हो गया और में सीधा 15 साल पीछे चला गया और मेने सीधा मैसेज भेजा की मम्मी?....उसका जवाब आया की हाँ..तुम पापा ?....मेने लिखा की हाँ ..हाँ .... हाँ ....ख़ुशी ..!!

उस दिन से हमारी बाते होने लगी और कुछ दिनों क की बातचीत के बाद एक दिन मिलने का तय हुआ। शायद 15 सालो के बाद हम दोनों फिर से मिलने जा रहे थे । मैं तो मिलने की उत्सुकता में अगली रात सोया ही नहीं जैसे मेरा दिल पूरी रात यादे बरसता रहा और आंखे पल्खें जुका के बस भीगती रही। दूसरे दिन  जब मेरी आंखे खुली तो बहुत देर हो चुकी थी और जैस तैसे फटाफट मुँह धोके घर से उससे मिलने के लिए निकल पड़ा। रिक्शा में बैठते ही मेने उसको मैसेज किया की तुम आ रही हो ना? उसका जवाब आया की में तो पहुंच चुकी हूँ, तू आ रहे हो ना? मैंने कहा हाँ..रस्ते में हूँ..अभी पंहुचा ! रिक्शा के मीटर के साथ मेरी धड़कन भी तेज़ हो रही थी और बस यही सोच रही थी की कैसे मिलूंगा ? देखने के तो हु एक दूसरे को बचपन जानते हैं और दूसरी तरफ 15 साल बाद मिल रहे है ..में यही ख्यालो में था उतनी देर में अचानक से झटका लगा, कुछ समज आये उससे पहले रिक्शा वाले भैया बोले आ गया साहेब !! में पैसे देके पीछे मुड़ा तो ख़ुशी सामने खड़ी हुई थी देख के समज नहीं आया की गले से लगा लू या फि दूर से ही हवा में "hyy" फेंक दूँ ? वहाँ पहुंचने के बाद मेरे अंदर यादो की बारिश रुकी और पहली बार मेरी आँखों ने पलके उठायी थी और सामने वो खड़ी थी। 

हम जाके एक टेबल पे बैठे और उसने पूछा की बताओ क्या लोगे ? में कुछ बोलूं उतने में वो बोली क में तो नूडल्स लुंगी ..मेरा दिमाग तो सब्जी-रोटी पे ही जाके अटका ! वो तो नूडल्स चॉपस्टिक्स से खाने लगी ...इधर मेरी रोटी में सब्जी नहीं आ रही हैं..प्लेट भी एकदम समतल थी तो ऐसे रोटी का टुकड़ा हाथ में लेके कोशिश कर रहा पर सब्जी रोटी में चढ़े चढ़े ..पर नहीं ...उतने में उसने पूछा की तुम्हे इतना पसीना क्यों आ रहा है? सब कुछ ठिक हैं? अब उसे कैसे बताऊ की मेरी रोटी में सब्जी आ नहीं रही है .किसी है सब्जी तुम्हारी ? मेने सुखी रोटी चबाते हुए कहा की हाँ ..ही बहुत ही मज़ेदार हैं.....

ख़ुशी के आने के जीवन एकदम सरल लगने लगा जैसे कोईं अलादीन को अपना खोया हुआ चिराग मिल जाये। मम्मी - पापा, भाई -बहन, दोस्त जैसे फ़िक्के फ़िक्के लगने लगे क्योकि इंसान प्यार में होता है तो होली में भी पटाखे फोड़ता है। मेरी ज़िन्दगी में इतना अच्छा हो रहा था की मुझे सिंगापोर आगे की पढाई के लिए मौका भी मिल गया और ख़ुशी तो सुनते ही पागल हो गयी और कसके मुझे गले से लगा लिया दूसरी तरफ में अपने आंसू से अपनी कहानी लिख रहा था ताकि ख़ुशी के अलावा कोई गैर उससे पढ़ ना जाये ..मम्मी मेरी अलग ही पीछे पड़ी हुई थी,बेटा स्टेशन पे विमान समय पे तो आ जायेगा ना?और हाँ! होटल पे खाने के लिए मत उतरना ..वरना अपना विमान भूल जायेगा तो ?एक तो अनजान शहर अंजान लोग..मैंने कहा मम्मी वो विमान है..बस नहीं ..क्या यार मम्मी तू चुप रहे वही अच्छे हैं ..तुझे  कुछ नहीं पता इसमें। 

में २ दिन बाद पहुंच गया सिंगापोर हवाईअड्डा। वहा पहुंचते ही मेने ख़ुशी के लिए वीडियो रिकॉर्ड किया की "देखो ख़ुशी में पहुंच गया,बहुत ही अच्छा लग रहा है" में ख़ुशी को भेजने ही वाला था उतने में मम्मी का फ़ोन आ गया ..मेने कहा हाँ बोलो मम्मी? बेटा पहुंच गया? विमान भूल तो नहीं गया था? बैठने को जगह मिल गयी थी या खड़े खड़े हो गया? उतने में पापा ने फ़ोन खिंच लिया और कहने लगे बेटा पैसे है तेरे पास? हाँ है पापा अभी तो, मैंने कहा। चलो बाद में करता हूँ ऐसा बोलके काट दिया और ख़ुशी को वीडियो भेजने में लग गया। 


आईना-करण 

मेने देखा व्हाट्सप्प पे उसकी फोटो नहीं लगी हुए ,मेने instagram पे देखा तो "instagram user" लिखा हुआ आ रहा तो मैंने मेसेज देखे उसमे लिखा हुआ था "माफ़ कर देना , मुझे नहीं लगता की हमारे बिच में चल पायेगा अब ..में यहाँ तुम वहां और वैसे भी मुझे नहीं लगता में तुम्हारे लायक हूँ ,माफ़ करना ,अलविदा। " यह सुनके ऐसा लग जैसे मुझे किसी ने अचानक से 100 फ़ीट की उचाई से धक्का दे दिया हो। टेक्सी चलने लगी पर में ख़ुशी पे अटका हुआ हूँ। पता नहीं चल रहा किस्से बात करूँ? कैसे बताऊ.. अचानक से पता नहीं क्यों में पापा को फ़ोन लगा दिया ..हाँ बैठ गये टेक्सी में ?  में कहा हाँ ।  2 मिनट के बाद पापा सामने से पुछा की क्या निकली वो ? ... मैंने कहा पापा कौआ ..इतना कहके में रोने लगा ...पापा बोले बेटा तुम सिंगापोर जा सको इसलिए तुम्हारी मम्मी ने सोने का हार नहीं बनवाया क्योंकि तुम खुश रहो  तुम आगे बढ़ो, चलो बाद में बात करते हैं ऐसा बोल के फोन रख दिया।

उतने में थोड़ी देर में मुझे एहसास हुआ की कभी कभी राजनीति अपने स्वार्थ को छोड़ के दुसरो के लाभ के लिए भी होती हैं। ऐसी ख़ुशी आएगी और जाएगी'..पर मेरी असली ख़ुशी तो मेरी माँ है ...वो कभी कही नहीं जाएगी ..में उस वक़्त गलत था, राजनीति मम्मी ने की थी पर फायदा मेरा था , मैंने पापा को फिर से फोन किया और कहा की पापा में गलत था क्योंकि कोयल को अपना घोसला नहीं होता पर कौआ का तो होता हैं ना ......वो कौआ नहीं कोयल थी ...पापा हल्का सा मुस्कुराये और फ़ोन रख दिया। 


By Yash Ghadiya



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