By Gayatri Satish Sawant
एक दिन मैं किसी काम से मुंबई गई थी, जहाँ मैंने ऊँची इमारतें देखीं और सूरज की किरणें ऊँची इमारतों की दीवारों को चूम रही थीं, मुझे मेरी माँ का फोन आया, उन्होंने पूछा तुम कहाँ हो, क्या तुम ठीक हो, मैं गुस्से में आ गई और कहा माँ तुम इतनी परेशान क्यों हो, मुझे बार-बार फोन मत करो, मैं तुम्हें कुछ पैसे भेज रही हूँ जो भी तुम्हें चाहिए खरीद लो, और मैंने कॉल समाप्त कर दी लेकिन उस समय मुझे पता नहीं था कि मेरी माँ मुझसे बात करना चाहती थी।
जब मेरी कार एक रास्ते से गुजर रही थी, मैंने फुटपाथ के पास एक बहुत बड़ी भीड़ देखी, मैं अपनी कार से बाहर आई, मैं भीड़ की ओर गई और फटे और गंदे कपड़ों वाली एक बूढ़ी औरत की लाश देखी, उसके शरीर के पास एक कागज का टुकड़ा था जो उड़ता हुआ मेरे पैरों के पास आया और मैंने वह कागज का टुकड़ा ले लिया, उस कागज़ पर कुछ ऐसा लिखा था जिसने मेरे होश उड़ा दिए, मैं उस महिला के बारे में जानने के लिए उत्सुक थी, वहां मैंने एक छोटी सी चाय की दुकान देखी, जहां मैं गई और एक कप अदरक की चाय मांगी और उस दुकान के मालिक से उस महिला के बारे में पूछा जिसकी लाश मैंने फुटपाथ पर देखी थी।
एक दिन अचानक मीता के पिता की मृत्यु हो गई और उसके पति ने उसे घर से निकाल दिया। उसके पिता ही उसके जीवन में एकमात्र सहारा थे। मीता ने उनकी संपत्ति और व्यवसाय को संभाल लिया। लेकिन मीता का बर्ताव,और भी कठोर और क्रूर हो गया। गलत व्यावसायिक निर्णय और अपनी गलतियों को स्वीकार करने से इनकार करने के कारण वह मुसीबत में पड़ गई। धीरे-धीरे उसका व्यवसाय बेकार हो गया। अपने अभिमान और अहंकार में, मीता ने किसी से मदद माँगना उचित नहीं समझा। उसके दोस्त, जो सिर्फ़ उसकी दौलत और शोहरत के लिए थे, उससे अलग हो गए। कर्जदारों का बोझ बढ़ता गया और आखिरकार मीता को अपना सब कुछ बेचकर कर्ज चुकाना पड़ा।
एक दिन मीता अपने पुराने घर की ओर जा रही थी, लेकिन किसी ने उसे पहचाना नहीं। वह एक आम इंसान से बेघर और असहाय महिला में बदल गई थी। उसने अपनी पुरानी जिंदगी को फिर से पाने की कई बार कोशिश की, लेकिन उसका स्वाभिमान उसे मदद मांगने से रोकता था। एक ठंडी रात में मीता फुटपाथ पर बैठी थी, जब शहर की सड़कें बर्फ की तरह जम गई थीं। उसके पास न तो खाने को था और न ही पहनने के लिए गर्म कपड़े। उसकी हालत देखकर किसी ने उसकी मदद करने की कोशिश नहीं की, क्योंकि वे नहीं जानते थे कि वह वही मीता सेठी है, जो कभी शहर की शान हुआ करती थी। यहीं मीता का जीवन समाप्त हो गया; उसने उसी फुटपाथ पर अंतिम सांस ली। कहानी में सबसे चौंकाने वाला मोड़ उसकी मौत के बाद आया, जब उसकी पहचान सामने आई। अखबारों ने उसकी कहानी छापी और लोगों को पता चला कि वह, जो कभी शिखर पर थी, अब धरती पर असहाय है।
मीता ने कागज के एक टुकड़े पर अपने आखिरी शब्द लिखे..
कभी किसी महल की थी एक रानी
गुरुर से भरी, गरीबी से अंजानी
एक दिन ऐसा आया उसका गुरूर उसको सड़क पे लाया, हालात देख के उस रानी की अपनों ने भी उसको ठुकराया
सोना हो गया था राख, उसकी हालत हो गई थी खराब, जिंदगी भी अजीब खेल खेलती है जनाब
एक दिन रानी की आँखों में था पानी, क्योंकि अपनों ने ही किया था उसको पहचान के भी अंजानी...
By Gayatri Satish Sawant
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