By Shudhanshu Pandey
कैसे करूं बयां तेरे इन गुस्ताख निगाहों को,
पहली नज़र में जिसने मुझे मुझसे चुरा लिया।
पर डरते है इजहार-ए-मोहब्बत से, सुनो ना मेरे कुछ अल्फाज़ है तुम उसे सुन पाओगे क्या,
अगर करूं इज़हार मेरे इश्क का तुम मुझे अपनाओगे क्या?
इस दुनियां की भीड़ में मैं खोने सा लगा हूं,
मंजिलें धुंधली हो गई है मैं राहों में खड़ा हूं।
तुम उम्मीद की किरण बन कर मेरे पास आओगे क्या,
अगर करूं इज़हार मेरे इश्क का तुम मुझे अपनाओगे क्या?
किसी ने मुझे भी खूब चाहा, रिवाज़ - ए - इश्क मैं समझ न पाया,
मेरे खुशियों में ग्रहण लगा कर मुझको कलंक बताया था,
इस कलंक को अपने आंखों में लगा कर काजल कर पाओगे क्या,
अगर करूं इज़हार मेरे इश्क का तुम मुझे अपनाओगे क्या?
फरेबी इस दुनियां में सुकून मैं ढूंढने चला,
रिश्ते तो बहुत बनें वक्त रूठा लोग रूठे सबने दिखाया अपने अंदर की कला।
अब मैं थक चुका हूं जिंदगी की इस भाग दौड़ में,
तुम मेरे सर को अपने गोद में रख कर सहलाओगे क्या,
अगर करूं इज़हार मेरे इश्क का तुम मुझे अपनाओगे क्या?
By Shudhanshu Pandey
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