top of page

Badhawaas

By Harsh Raj


नदारद है अब दीदार उनका,


हैरत में डाले ये अंदाज़ उनका।


बेहूदा से बाहूदा भी हो गए हम,


बा-ख़ुदा फिर भी न मिला लिहाज़ उनका।


ज़ेहन में चल रहे कितने गुमान हैं मेरे,


हम कर ही न सके अब हिसाब उनका।


फ़ुज़ूल ही है अब वफ़ाई उनसे,


महज़ जुनून ही था ख्याल-ए-विसाल उनका।



मेरा माज़ी गवाह है मेरे इश्क़ का,


उसमें कोई कमी बरती न थी हमने।


उनकी बेदिल्ली का नज़ारा देख रहे थे जब सब,


उसको नज़रअंदाज़ कर दिया था हमने।


तसल्ली कर लेंगे, ख़ैर कोई बात नहीं,


वैसे भी आदत है हमें जीने की ग़म में।


ऐसा भी कौन सा अज़ाब बरस पड़ा है,


ख़ुद को तो पहले ही तबाह कर लिया था हमने।



आग़ाज़ हुआ ज़ोर-ओ-शोर से मगर,


अंज़ाम तक न पहुँच सके हम।


इस क़दर ही शिकस्त होती रही अगर,


फिर मसले तो होने से रहे कम।


ख़्यालों की कश्ती में डगमगाते रहे,


निकलते रहे हमारे हौसलों के दम।


और जो दास्तान-ए-मग़लूब लिखने बैठे तो,


ख़त्म हुई स्याही और घिस गया क़लम।



इतनी फ़ज़ीहत करवा चुके हैं हम,


कि अब बदहवास से फिरते हैं हर तरफ़।


एक ख़ुदा का ही तो ख़ौफ़ बचा था हमें,


काफ़िर जो बने, तो उसका भी ख़त्म हुआ शरफ़।


अब ख़ुदा भी हम और उसकी इबादत भी हम,


ख़ुद से ही सुलह हमारी और ख़ुद से ही झड़प।


गुमनाम ही रहेंगे तो भी ठीक मगर,


न किसी से चैन आए हमें, न किसी की हो तड़प।


By Harsh Raj

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Visitor

Not A War

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page