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Batohi

By Apoorva Sharma


कि सी छूटती ट्रेनट्रे सी जिं दगी और उस सफर को पकड़ने की जद्दो जहद

करते,भा गते हुए या त्री गण। कुछ ऐसा ही दृश्य हो ता है जब स्कूल(ऑफि स) जा ने का वक्त हो ता है।हैकभी -कभी यह सफर लगता है मा नो मी लों लंबा हो गया हो और कभी जैसे पलक झपकते ही मंजि ल करी ब। कि तना अजी ब़ और आम सा है ना सब.... उसी रा ह को रो ज़ पकड़ना , उसी या त्रा को प्रति दि न तय करना ।

इस दौ ड़-भा ग के खेल में थो ड़ी बहुत जगह वक्त बना ही लेता है कभी -कभा र खुद से गुफ्त़गू का । मैं और मेरी सा थी जो मेरे सा थ उतना ही मेहनत करती है जि तना कि मैं...(मुस्कुरा ते हुए) जी को ई और नहीं ये मेरी स्कूटी है।है

हम दो नों नि कल पड़ते हैं मि शन-ए-जिं दगी पर और फि र या त्रा की शुरुआत में सा मना हो ता है एक चि र परि चि त सी भी ड़ से... हां लो ग नहीं भी ड़ जो बस भा ग रही हो ती है मेरी तरह... इतने प्रदूषि त को ला हल से गुजरते हुए या त्रा जब गति पकड़ती है तो खुले से मैदा न,सुकून भरी हवा की कुछ थपकि यां भी मि लती हैं.हैं.जी चा हता है कि बस यहीं इसी समय या त्रा में थो ड़ा वि श्रा म कर ही लि या जा ए,जरा ठहर कर इस खूबसूरती से रो म रो म गुलज़ा र कर लि या जा ए। हकी कत से को सों दूर सही मगर "दि ल के बहला ने को ग़ा लि ब ये ख्या ल अच्छा है"है और तभी मस्ति ष्क हृदय से झुकी नजरों से कहता है "असुवि धा के लि ए खेद है,है या त्रा अभी शेष है।है"

बेचा रा मन अपना सा मुंह लेकर कह देता है कि "हां ! मेरी इस या त्रा में वि श्रा म कहां , मंजि ल ही है सि र्फ़ वो हसीं सफर कहां " यह सा रा खेल समय का ही है कि सी और का दो ष कहां । वक्त की सुइयां भी सा थ ही दौ ड़ में इस तरह हो ती हैं कि या तो वो जी तेगीं या मैं। कभी समय के हा थ वि जय हो ती है और कभी

या त्री के। यह वि जय-परा जय की क्री ड़ा तो युगों से चला आ रहा एक दि व्य सत्य है।है

पर जिं दगी के इस सफर में सुइयों की अपनी कुछ खा स जगह भी है.है.. इसकी पा बंदी ही है कि ठी क अपने समय पर अनुशा सन का पा ठ पढ़ा ती हुई भेड़ों से हर रो ज मुला का त का हो ना .. भैंसों का मा लि क के आदेश का पा लन करते हुए अपने गंतव्य की ओर चलते जा ना .. धरती मां का हर जी व मा नो इसी वक्त रूपी

जेलर के हुक्म़ की ता मी ल करते हुए, उसकी कैद में कैद हो कर भी भा ग रहा हो ...

अब ये आप पर नि र्भर करता है कि "समय वरदा न है या अभि शा प".... (मुस्कुरा ते हुए)

कभी -कभी लगता है कि शेक्सपि यर की 'रो जा लिं ड' को समय को लेकर रखे गए अपने वि चा रों में से एक वि चा र हम जैसे वक्त के कैदि यों पर भी रखना चा हि ए था । ये सो च भी बड़ी गहरी ची ज है भा ई, चंद पलों में कहां से कहां पहुंचहुं जा ती है.है..और हां पहि यों की तेज रफ्ता र में कुछ रफ्ता रें बेहद मजेदा र या दें ता जा कर देती हैं जि नका ख्या ल आते ही एक अलग ही रो मां च सा महसूस हो ता है.है..

है तो बहुत छो टी बा त पर शा यद ये सभी के सा थ घटि त अवि स्मरणी य घटना ओं में से एक है.है.. एक बा इक पर ती न से चा र कॉ लेज के लड़के, जगह बना ते हुई, आधे-अधूरे से से बैठे, बैग को कसकर था मे बेपरवा ह,उन्मुक्त से,अद्वि ती य प्रसन्नता का अनुभव करते हुए... ये वो समय है जि से हर को ई बां ध लेना चा हता है पर कमा ल की बा त ये है कि इसे बस जि या जा सकता है.है..मुट्ठी में या दें रह सकती है वक्त नहीं ।

कि तना मुख्त़लि फ है ये कि




"खुद हर कैद से आज़ा द

मगर गि रफ्त में इसकी सब हैं

आगे जि सके सब ध्वस्त हैं

अजी ये जना ब-ए-वक्त हैं।हैं

और अब चल रे मुसा फि र तेरी मंजि ल आ गई है।है उफ़! फि र से ये रजि स्टर, ये सा इन, मैं और घंटी ।

और भी बहुत कुछ अनकहा सा जुबां देने को रह गया है।है मगर कुछ रह जा ना जरूरी हो ता है,है आगे कुछ कहने के लि ए...और अब इज़ा जत चा हूंगीहूं गी ...जा ते- जा ते बस इतना कहूंगीहूं गी कि "मैं और मेरी मशरूफि यत़ अक्सर ये बा तें करते हैं कि का श!

तुम ना हो ती तो ऐसा हो ता

तुम ना हो ती तो वैसावै सा हो ता

वक्त ही वक्त हो ता

ये कहां आ गए हम यूं सा थ चलते-चलते।



By Apoorva Sharma





 
 
 

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Apoorva Sharma
Apoorva Sharma
18. Mai 2023
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Daily life ki sabki apni kahani.... people can connect it...

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