By Varad Ashtikar
।। थे आप मृत्युंजय जिसका था केवल एक ही स्वप्न की भारतवर्ष हो दिग्विजय ।।
।। अच्छे को सबसे अच्छा व बुरे को सर्वाधिक बुरा देना था आपका स्वभाव ।।
।। मस्तक पर तेजस्वी त्रिपुंड नेत्रों में अग्नितेज उदण्ड शरीर जैसे साक्षात मार्तण्ड ।।
।। हाथों मे, स्वशों मे, मन मे, ध्यान मे, निद्रा मे केवल था ध्वज हमारा प्यारा भगवा ।।
।। जहाँ संहरते थे आप यवन,दच्छ, म्लेच्छ,फिरंगी व मुग़लों को वहाँ पुनःस्थापित करते थे धर्म, निष्ठा व मनुष्यता को ।।
।। बचाया जिसने हिंदुत्व और साधा ध्येय अखंड भारत मे विराजे बस हिन्दवी स्वराज्य ।।
।। लेके प्रेरणा श्रीप्रताप के छापामार युद्धनीति हुए विजयी आप अनगिनत युद्धों मे, बने आप स्वयं एक प्रेरणा जिसने स्थापित किया स्वतंत्र जलसेना दल ।।
।। थे आप आदर्श-विचारों के पक्के थे आप एक उत्तीर्ण शिष्य श्रीसमर्थरामदास के सफल बेटे शहाजी व जीजाबाई के, ईश्वर अपने बेटे संभाजी-राजाराम के और एक सम्राट हर भारतवासी के हृदय के ।।
।। जिसकी हुंकार से भयभीत हो काँप उठते थे शत्रु,वायु,भूमि,जल मिल जाता था गरीबों को उनकी समस्या का हल ।।
।। उठाए आपने शस्त्र धर्मरक्षा हेतु पढ़े सभी ग्रंथ-शास्त्र शांति संदेश हेतु बने थे आप सत्रुओं के लिए राहु-केतु ।।
।। बुद्धि,शक्ति और साहस था सहस्र हाथियों के समान
ऐसा था व्यतिकत्व कि शत्रु भी करते थे आपका सम्मान ।।
।। लोग आपके लिए निःसंकोच लगा देते थे अपने प्राणों की बाजी
केवल आप ही थे इतने महान श्री छत्रपति शिवाजी ।।
By Varad Ashtikar
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Very