By Aayushi
25 अप्रेल २०१९!
बर्ड डे की रात भी किसी ने सुष को चैन से सोने नहीं दिया।
रात साढ़े 11 बजे ईसीसी के रूम नंबर 103 की लैण्डलाइन की घंटी बजी।
"हेलो! एक आवाज़ आई। अरे यह तो सुष नहीं है।" अश्विनी ने फोन को हाथ से ढक करके अभिषेक से बोला।
"कोई बात नहीं!" उसे बोल दो की सुष से बात करा दे। अभिषेक ने बोला।
"हां यह सही रहेगा।" अश्विनी ने कहते फिर फोन को नजदीक लेकर आया। फोन कट हो चुका था। दोनों एक दूसरे को अब टेंशन में देखने लगे।
12 बजने वाले थे और बर्ड डे गर्ल शायद मखमली बिस्तर पे मुलायम कंबल के अंदर एसी चलाकर घोड़े बेच के सो रही थी।
पर अब क्या करें दोबारा से लड़कियों की ईसीसी में फोन करने की हिम्मत उन दोनों की नहीं थी और अश्विनी और अभिषेक को मुझे और फातिमा को भी तो उठाना था।
वैसे हम सारे दोस्तों में सोने में माहिर तो मैं और फातिमा ही थे। दोनों के रूम्स आमने सामने थे और ट्रेनिंग के क्लास से लौटते वक्त टेढ़े-मेढ़े चलके ऐसे आते जैसे कोई नशे में हो।
"आयुषी पिज़्ज़ा खाने के बाद और ज्यादा नींद आती है।। प्लीज मुझे उठा के रूम में ले चलो।" वह मेरे कंधों पर सर रखकर हंसते हुए कहती।
"सही कहा चंदा पता नहीं कौन सी नशीली दवा होती है इन पिज़्ज़ा में की खाने के बाद पलके ऊपर ही नहीं उठती।" रूम के दरवाज़े के पास पहुंचकर चाभी ढूंढ़कर दरवाज़ा खोलना पहाड़ तोड़ने जैसा काम लगता है हमें और दरवाज़ा खुलने के बाद झट से हम एक दूसरे को गुडनाइट बोल कर एसी का आनंद लेते हुए बेड पे कूद पड़ते।
तभी रात के ग्यारह उनसठ का अलार्म बजा और मैं झट से उठ गयी। आसपास देखा तो न मेरी रूममेट थी, न ही फातिमा की झलक थी और न ही एसी की ठंडी हवा। मैं अपने घर पे थी।
"सपना था।" मैंने धीरे से आहें भरी।
"भगवान! सपना दिखाना था तो कुछ नयी रिलीज करके दिखाओ ना रिपीट वाले क्यों दिखाते हो? पर सुष का था तो इस बार माफ किया। " मैंने मन ही मन कहा।
टाइम देखा तो बारह बजके दो मिनट हो रहे थे।
"अब क्या आपको डांट लगी है तो पूरी दुनिया का टाइम दो मिनट आगे कर दोगे?" मैंने फिर से भगवान को डांट लगाई।
"अभी तो लेवल ग्यारह उनसठ हुआ था। दस सेकंड में बारह दो कैसे कर दिया? चीटर!"
खैर इस कोरोना ने अपने बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए एक अलग ही थीम दे दिया था। लोक्डाउन बर्थड।
भला हो इस ऑनलाइन वेबसाइट का जिसमें गिफ्ट के इतने सारे ऑप्शंस दिए थे। कस्टमाइज्ड मग, कस्टमाइज्ड तकिये, कैरीकेचर, प्लांट्स सेम डे डिलिवरी गिफ्ट्स और ना जाने क्या क्य।
आज एक साल हो गए थे सुष से मिले हुए। और मैं उसे बहुत मिस कर रही थी। नाम तो उसका वैसे सुष्मिता था पर सब उसे अलग अलग नाम से पुकारते। सुष, सुशी, सुष्मिता, छुटकी और निक्की उसे कभी कभी सरोजा अम्मा भी बुलाता था। मैं उसे छुटकी बुलाती थी। क्यूंकि हम सबकी लाडली होते हुए भी हमारी दादी अम्मा थी। किसी को कुछ भी परेशानी होती, उसके पास हर सवाल का सल्यूशन होता।
मन कर रहा झट से विशाखापत्तनम जाऊ और पहुंच कर उसे गले लगा लू । छुटकी के बर्थ डे की प्लानिंग दो हफ्ते पहले से शुरू हो गयी थी। मनोज, अनू, निक्की और मैंने बर्थडे विडियो बनाने का सोचा और खूब सारी गिफ्ट्स दी। अंततः हमने १२:03 को सुष का कॉल लगया।
"हैलो ओश।"
"हैप्पी बर्थडे सुष।" मैंने धीरे से चिल्लाते हुए बोला।
कॉन्फ्रेंस में निककी भी था।
"थैंक्यू सो मच ओश।"
"आज सुष का तेलुगु कैलेंडर के अनुसार बर्थ डे है। रीयल बर्थ डे तो किसी और दिन है।" तभी निक्की ने बीच में टांग अड़ाई।
यहसुनकरमेरेमुंहसेएकहीआवाजआई," हेमाँ! माताजी।"
By Aayushi
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