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Ghar Ke Bade

By Nidhi Pant




घर के बड़े बिन कहे बिन सुने न जाने कितनी बातें दबाए चले गए। एक खुशबू छोड़ गए अपनी जो आज भी महकती है उस कमरे में जहां कभी वो रहा करते थे।पुरानी सी एक मेज़ पर पड़ी डायरी में कुछ तजुर्बे लिख दिए थे,जो उनके संघर्षों की जुबानी थे। मन की इच्छाएं यहां भी शब्दों में नदारद दिखीं। वो इच्छारहित थे या उन्होंने बस दूसरों की इच्छाओं को पूरा करने में अपनी दुनिया ढूंढ ली थी। पैंट की जेबें टटोली तो वहां भी मिला तो क्या, घर के सामान की एक कतार, उसमें भी उनकी अपनी जरूरतें तो थी ही नहीं। पत्थरों को जोड़कर घर बनाने से लेकर पुरानी चप्पलों तक में दूसरों की प्राथमिकता का होना बताता है कि क्यों वो घर परिवार की नींव थे। उसे मजबूत करते करते उन्हें इतना समय भी न मिला कि वो भी सपने देखते।कभी खुद के लिए भी कुछ खर्चते। अब वो तो हैं नहीं,पर जो कुछ उनका था वो सबकी इच्छाओं के बाद की बची कुची जरूरतें थी।कमरे की छोटी सी खिड़की में रखा उनका वो सामान उनकी याद दिलाता रहता है,और उससे भी अधिक यह प्रदर्शित करता है कि हमने अपनी बड़ी बड़ी इच्छाओं को पूरा करके कितना सूक्ष्म जिया और वो बिन किसी इच्छा को पूरा किए कितनी बड़ी ज़िंदगी जीकर चले गए।


By Nidhi Pant




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