By Faiz Siddiqui
इश्क़ की इन्तहा सुन दहल जाएगा
सोच ले इब्दिता है संभल जाएगा
उम्र भर तो वफ़ा साथ रहती है बस
हुस्न पे तू न इतरा ये ढल जाएगा
हिज्र की रात है और ये तीरगी
हसरत ए दीद में दम निकल जाएगा
सोच कर बात ये गमज़दा आज हूं
क्या करूंगा अगर तू बदल जाएगा
खेलना मत कभी इश्क़ की आग से
ये बदन मोम का है पिघल जाएगा
फैज़ बचना निगाहों से उनकी जरा
इश्क़ की राह में तू फिसल जाएगा
By Faiz Siddiqui
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