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Izhaar

Updated: Jan 18




By Harsh Raj


दिन इतवार का था, और मौसम इकरार का था

याद है कुछ, जब मौका पहली मुलाकात का था?

तुम्हारी आँखों में काजल और कानों में बालियां थी,

सजी तुम थी, पर चेहरे पे मेरे क्यों लालियां थी?

हसीन तो तुम तब भी थी और अब भी हो उतनी ही,

तुमसा मिलेगा नहीं चाहे कोशिश कर लूं जितनी भी।

हाथ में तुम्हारे एक फूल था और मैं खाली हाथ था,

सुकून बस इतना था दिल में कि मैं तुम्हारे साथ था।


हम दोनों चुप थे, पर खामोशी सब बयां कर रही थी,

मानो ये कुदरत सारा करम हम पर ही अयां कर रही थी।

मैं खुश था बहुत और खुश तुम भी काफी लग रही थी,

लफ्जों से नहीं, अपनी नजरों से तुम बातें कर रही थी।

लोगों की उस भीड़ में मुझे सिर्फ तुम दिख रही थी,

तुम अंगिनत कांटों के बीच गुलाब सी खिल रही थी।


हर बार मुस्कुराकर तुम अपना चेहरा क्यों मोड़ रही थी?

नजरें मिलाने में झिझक तुमसे ज्यादा मुझे हो रही थी।

इज़हार-ए-मोहब्बत अब इससे ज्यादा क्या हो सकता है?

यकीन करो, होश होते हुए भी इंसान होश खो सकता है।

समझना होता तो तुम उसी वक्त समझ गए होते,

साथ होकर भी हम इस कदर ना खो गए होते।

खता तुम्हारी है, इसे मानोगे कब तुम?

इश्क का असली मतलब जानोगे कब तुम?

वफादारी का वादा करके वादा यूं तोड़ नहीं दिया करते,

प्यार एक जंग है, डर के मैदान यूं छोड़ नहीं दिया करते।


By Harsh Raj




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