By Deepshikha
कभी ज़ोर से हंसती,अठखेलियाँ सी करती तेरी हरकतें,
और हंसी दबा के बस,ज़रा सा मुस्कुराना मेरा।
तुम्हारी लिखी हुई हर एक किताब,तुम्हारे हर इक खत की तरह,
पढ़ तो लेना एक एक लफ्ज़,पर नहीं पढ़ा बता देना मेरा।
वो रूठने का मज़ा,तेरी बेचैन सी आँखें,
उठते हुये जज़्बात छुपा कर,ऐंठ दिखा जाना मेरा।
कुछ उथली सी मुलाकातों की,वो गहराई में डूबती बातें,
अब बात बात पे बात बदलना,और दिल की बात ज़ब्त कर जाना मेरा।
कभी रात कटती थी,पेहरों लम्बी बातों से,
अब नींद दस्तक ना भी दे,तो जागती आँखों से सो जाना मेरा।
छुप जाना, कभी रो देना,कभी बच्चों की सी ज़िद करना,
कभी तेरी बस एक मुस्कुराहट पर, हर अश्क पी जाना मेरा।
तेरा जाते जाते यूं ही पलटना,और रुकने की वो ज़िद,
खुद दरवाज़ा बंद करना,और मन ही मन कह देना मेरा "काश".
By Deepshikha
A beautiful tribute to the little moments, emotions, and connections we shared, subtly woven into the tapestry of life. Your words resonate deeply, revealing the hidden treasures of the experiences together.
Profound way of thinking 😊
Kaash... yunhi khatam na ho jaate ye panktiyaan
kuchh kaash na jane kyn haqiqat se lagte hai….kuchh kaash kyn nahi sach ho jate….kuchh kaash kyn nahi zindagi bn jaate🥰🤞🏻
Your poem beautifully captures the essence of cherished memories and emotions. It's a heartfelt reflection on the small moments that make life meaningful and the longing for them to stay with us. 'काश' - a wish we all hold close to our hearts.