By Prashant Sachan
कभी कभी बस यू ही,
कुछ थक कर मैं बैठना चाहता हूँ,
कुछ पल अपने साथ ,
सिर्फ अपने साथ ही मैं चाहता हूँ,
अकसर हो जाती है लम्बी दूरी,
खुद से बातें किये बिना ,
कुछ इन लम्बी दूरियों से फासला ,
अब मैं मिटाना चाहता हूँ,
खुद मे कुछ और झाक कर ,
खुद को कुछ और जानना चाहता हूँ ।
By Prashant Sachan
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