By Upasana Gupta
सच्चे दिलों में भी चोर बहुत है
खामोशी का शोर बहुत है
क्यों गिले शिकवे ही करते रहें
जब कहने सुनने को और बहुत है
खामोशी का शोर बहुत है
निराशाओं के मांझे से क्यों खुद ही काटे अपने हाथ
जीवन की चरखी में बाकी, जब उम्मीदों की डोर बहुत है।
खामोशी का शोर बहुत है
चुनते क्यों हरबार हैं हम उलझी अंधेरी रातों को,
आगे बढ़ने को जीवन में जब आशाओं की भोर बहुत है।
खामोशी का शोर बहुत है ।।
रास्ते हों जब खालीपन के, क्यों चलते रहें सदा उसी पर,
इस से बेहतर तो एक कदम प्यार का, कुछ अपनो की ओर बहुत है।
खामोशी का शोर बहुत है||
By Upasana Gupta
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