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Meri Pahchaan

By Upasana Gupta


सवाल अलग है, आज मुझसे दिल का,

पूछ रहा है, कौन हूं मै?

हूं कोलाहल मंशाओं का,

या विवशताओं सी मौन हूं मैं?

उगता सूरज तो नहीं, बस एक किरन सी बन पाई हूं,

नहीं पहचान अलग सी मेरी, मैं तो खुद की ही परछाई हूं....

ढ़ाई अछर ही मेरी इकाई, न आधी, न पौन हूं मैं..

हूं कोलाहल मंशाओं का,

या विवशताओं सी मौन हूं मैं?

गुजरती हूं हर रोज ही मैं, उम्मीदों के रास्तों से होकर,

और पा लेती हूं कुछ खुद को, बस थोड़ा सा ही खुद को खोकर.....

कभी तो खरे सिक्के सी हूं, और कभी एक खोट हूं मैं...

हूं कोलाहल मंशाओं का,

या विवशताओं सी मौन हूं मैं?

गिरकर संभलना मैंने धीरे-धीरे सीख लिया है,

पथरीला ही सही, पर मैंने रास्ता अपना बना लिया है,

अब कभी शिष्य मैं अर्जुन सी हूं, और कभी गुरू द्रोण हूं मैं.....

हूं कोलाहल मंशाओं का,

या विवशताओं सी मौन हूं मैं?


By Upasana Gupta

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