By Swati Sharma Singh
मुझको नहीं घुटना है
इन बंद दीवारों मे
मुझको नहीं डूबना
इन आसुओं के सैलाबों मे
मुझको जीनी है
हर पल ज़िन्दगी
मुझको उड़ना है
इन आसमानो मे
मुझको चलते जाना है
कोई हो या न हो
मुझको बढ़ते जाना है
ढूंढनी है मंज़िल
मुझको नहीं सहनी है
कोई भी बंदिश
दोस्ती हो किसी से
या फिर हो रंजिश
मुझको बहते जाना है
तूफानी लेहेर के जैसे
मुझको ये दिखाना है
कि मैं हूँ हट के
कि ये देख लें सभी
मुझको खुद पे है यकीन
मेरी आँखों मे है बस
उम्मीदों कि रौशनी
By Swati Sharma Singh
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